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भागें जीवहीकै उत्तम तत्त्वपणा कैसे है सो कहै हैं,अंतरतच्चं जीवो बाहिरतच्चं हवंति सेसाणि । णाणविहीणं दव्वं हियाहियं णेय जाणादि ॥२०५॥ __ भाषार्थ-जीव है सो तो अन्तरतत्व है. बहुरि बाकीके सर्व द्रव्य हैं ते बाह्यतत्त्व हैं. ते ज्ञानकरि रहित हैं सो जो ज्ञानकरि रहित है सो द्रव्य हेय उपादेय वस्तुकू कैसे जाने ? भावार्थ-जीवतत्त्वविना सर्व शून्य है ताः सर्वका जाननेवाला तथा हेय उपादेयका जाननेगला जीव ही परम , तत्त्व है ॥ २०५॥
आगे जीव द्रव्यका स्वरूप कहकर अब पुद्गल द्रव्यका स्वरूप कहै हैं,सव्वो लोयायासो पुग्गलदठवेहिं सव्वदो भरिदो। सुहमेहिं वायरेहिं य णाणाविहसचिजुत्तेहिं ॥२०६॥
भाषाथ-सर्व लोकाकाश है सो सूक्ष्म वादर जे पुद्रल द्रव्य तिनकरि सर्व प्रदेशनिविष भरथा है. कैसे हैं पुद्गल द्रव्य ? नाना शक्तिकरि सहित हैं. भावार्थ-शरीर आदि अनेकप्रका. र परिणमन शक्तिकरि युक्त जे सुक्ष्म वादर पुदल तिनिकरि सर्वलोकाकाश भरया है ।। २०६ ॥ जे इंदिएहिं गिझं रूवरसगंधफासपरिणाम। तं चिय पुग्गलदत्वं अणंतगुणं जीवरासीदो ॥