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भाषार्थ - पृथ्वीकायिक जीवनिकी उत्कृष्ट आयु बाईस हजार वर्षकी है. अपकायिक जीवनिकी उत्कृष्ट आयु सात हजार वर्षकी है. अग्निकायिक जीवनिकी उत्कृष्ट आयु तीन दिनकी है. वायुकायिक जीवनिकी उत्कृष्ट आयु तीन ह जार वर्षकी है ।। १६२ ॥
आगे बेन्द्रिय आदिककी आयु कहै हैं,
वारसवास वियखे एगुणवण्णा दिणाणि तेयक्खे | चउरक्खे छम्मासा पंचक्खे तिणि पल्लाणि ॥ १६३ ॥
भाषार्थ - वेइन्द्रिय जीवनिकी उत्कृष्ट आयु बारह वर्षकी है. तेइन्द्रिय जीवनिकी उत्कृष्ट आयु गुणचास दिनकी है. चौइन्द्रिय जीवनिकी उत्कृष्ट प्रायु छह महीनाकी है. पंचेन्द्रिय जीवनिकी उत्कृष्ट प्रायु भोगभूमिकी अपेक्षा तीन पल्यकी है ।
या सर्व ही तिच अर मनुष्यनिकी जघन्य प्रायु कहै हैंसव्वजहण्णं आऊ लद्धियपुण्णाण सव्वजीवाणं । मज्झिमही मुहुतं पज्जत्तिजुदाण णिकिटं ॥ १६४ ॥
भाषार्थ - लब्ध्यपर्याप्तक सर्व जीवनिकी जघन्य श्रायु मध्यमहीन मुहूर्त है. सो यह क्षुद्रभवमात्र जाननी एक उस्वास के अठारहवें भाग मात्र है, बहुरि जिनके लब्ध्यपर्याप्ति होय, ऐसे कर्मभूमि के तिर्येच मनुष्य तिन सर्व ही पर्याप्त जीवनिकी जघन्य आयु भी मध्यहीन मुहूर्त्त है, सो यह पहलेतैं बडा मध्य अन्तर्मुहूर्त्त है ।
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