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जीवो हवेइ कत्ता सव्वं कम्माणि कुव्वदे जमा ।। कालाइलद्धिजुत्तो संसारं कुणदि मोक्खं च ॥१८॥
भाषार्थ-जारौं यह जीव सर्व जे कर्म नोकर्म तिनिकू करता संता आपका कर्तव्य मान है तातें कर्ता भी है सो अापकै संसारकू करै है. बहुरि काल आदि लब्धिकरि युक्त हूवा संता आपकै मोक्षकू भी आप ही करै है. भावार्थ-कोई जानैगा कि या जीवकै सुखदुःख आदि कार्यनिकू ईश्वर आदि अन्य करै है सो ऐसें नाहीं है आप ही कता है. सब कायेनिकू आप ही करै है. संसार भी आपही करै है. काल लब्धि आवै तब मोक्ष भी आप ही करै है सर्वकार्यनिप्रति द्रव्य क्षेत्रकाल भावरूप सामग्री निमित्त है ही ॥ १८८ ॥ जीवो वि हवइ भुत्ता कम्मफलं सो वि भुंजदे जमा कम्मविवायं विविहं सो चिय भुंजेदि संसारे १८९॥
भाषार्थ-जातें जीव है सो कर्मका फल या संसारमें भोगवै है तातै भोक्ता भी यह ही है. बहुरि सो कर्मका वि. पाक संसारविष सुखदुःखरूप अनेक प्रकार है तिनकू भी भोगै है ॥ १८९॥ जीवो वि हवइ पावं अइतिव्वकसायपरिणदो णिचं। जीवो हवेइ पुण्णं उवसमभावेण संजुत्तो ॥१९॥ . भाषार्थ-यह जीव अति तीव्र कषायकरि संयुक्त होय