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( ७५ ) आगे पंचेंद्रियनिकें भेद कहैं हैं। पंचक्खा विय तिविहा जलथलआयासगामिणो तिरिया
पत्तेयं ते दुविहा मणेण जुत्ता अजुत्ता य ॥१२९ । किसी वनस्पतिकी उत्पत्ति पर्व ( पंगोली) से होती है जैसे ईख बेंत भादि । कोई वनस्पति कन्दसे उपजती हैं जैसे सू. रण श्रादि । कई वनस्पति स्कन्धसे होती हैं जैसे ढाक । बहुत सी वनस्पति बीज से होती हैं जैसे चना गेहूं आदि । कई वनस्पति पृथ्वी जल आदिके सम्बन्धसे पैदा हो जाती हैं वे सम्मूर्छन हैं जैसे घास आदि। ये सभी वनस्पति सप्रतिष्ठित तथा अप्रतिष्ठित दोनों प्रकारकी हैं ॥१॥ गूढसिरसंधिपव्वं समभंगमहीरहं च छिण्णरुहं। साहारणं सरोरं तविवरीयं च पत्तेयं ॥२॥
जिन वनस्पतियों के शिरा ( तोरई आदि में ) संधि (खापोंके चिन्ह खरबूजे आदि में ) पर्व ( पंगोली गन्ने आदि में ) प्रगट न हों और जिनमें तन्तु पैदा न हुभा हो. (मिंडी आदिमें ) तथा जो काटने पर फिर बढ जांय वे सप्रतिष्ठित वनस्पति हैं इनसे उलटी अप्रतिष्ठित समझनी चा.. हिये ॥२॥
मूले कंदे छल्ली पवालसालदलकुसुमफलबोजे । समभंगे सदि णता असमे सदि होंति पत्तेया॥३॥ जिन वनस्पतियोंका मूल हल्दी, अदरक आदि )