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र्छन मनुष्य एते तौ सान्तर कहिये अन्तरसहित हैं. अवशेष सर्व जीव निरन्तर हैं. भावार्थ- पर्यायसुं अन्य पर्याय पावै फेरि वाही पर्याय पावै जेते वीचमें अन्तर रहे ताकूं सांतर कहिये सो इहां नाना जीव अपेक्षा अन्तर कला है जो देव तथा नारकी तथा मनुष्य तथा लब्ध्यपर्यातक जीवकी उत्पत्ति कोई कालमें न होय सो तौ अन्तर कहिये. बहुरि अंतर न पड़े सो निरन्तर कहिये. सो वैक्रियकमिश्रकाययोगी जे देव नारकी तिनिका तौ बारह मुहूर्त्तका कया है. कोई ही न उपजै तो बारह मुहूर्त्त तांई न उपजै बहुरि सम्मूर्छन मनुष्य कोई ही न होय तौ पल्यके असंख्यातवें भाग कालतांई न होय. ऐसैं अन्य ग्रन्थनिमें कहा है अवशेष सर्व जीव निरन्तर उपजै हैं |
* / आगें जीवनिकूं संख्याकरि अल्प बहुत कहैं हैंमणुयादो रइया रइयादो असंखगुणगुणिया । सव्वे हवंति देवा पतेयवणप्फदी तो ॥ १५३ ॥
भाषार्थ - मनुष्यनित नारकी असंख्यात गुणे हैं. नारकीनितें सर्व देव असंख्यात गुणे हैं, देवनिर्वै प्रत्येक वनस्पति जीव असंख्यात गुणे हैं ।
पंचक्खा चउरक्खा लद्धियपुण्णा तहेव तेयक्खा । वैयक्खा विय कमसो विसेससहिदा हु सव्व संखाए भाषार्थ - पंचेन्द्रिय चौइन्द्रिय तेइन्द्रिय वेइंद्रिय ये लब्ध्य