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( ८२ ) पाणधारण अर्थ है सो व्यवहार नयकरि दश प्राण हैं. तिनमें यथायोग्य प्राणसहित जीवै ता• जीवसंज्ञा है। ___ आगे एकेन्द्रियादि जीवनिक प्राणनिकी संख्या कहै हैं, एयक्खे चदुपाणा वितिचउरिंदिय असण्णिसण्णीणं। छह सत्त अट्टणवयं दह पुण्णाणं कमे पाणा ॥१४॥
भाषार्थ-एफेन्द्रियकै च्यारि प्राण हैं बेन्द्रिय, तेन्द्रिय चतुरिन्द्रिय, असैनी पंचेन्द्रिय, सैनी पंचेन्द्रियनिकै, पर्याप्तिनिक अनुक्रमतें छह सात आठ नव दश प्राण हैं ए प्राण पर्याप्त अवस्याविषै कहे ॥ १४०॥
आगे इनिही जीवनिकै अपर्याप्त अवस्थाविषै कहै हैंदुविहाणमपुण्णाणं इगिवितिचउरक्ख अंतिमदुगाणं तिय चउ पण छह सत्त य कमेण पाणा मुणेयव्वा __भाषार्थ-दोय प्रकारके अपर्याप्त जे एकेंद्रिय, द्वींद्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय असैनी तथा सैनी पंचेंद्रियनिके तीन च्यारि पांच छह सात ऐसे अनुक्रमः प्राण जानने. भावार्थनिवत्यपर्याप्त लब्ध्यपर्याप्त एकेंद्रियके तीन, वेइन्द्रियके च्यारि तेइन्द्रियके पांच, चतुरिन्द्रियके छह, असैनी सैनी पंचेंद्रियके सात ऐसे प्राण जानने ।
भागें विकलत्रय जीवनिका ठिकाणा कहें हैंवितिचउरक्खा जीवा हवंति णियमेण कम्मभूमीसु ।