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( ७६ ) भाषार्थ-पञ्चेन्द्रिय तिर्यच हैं ते जलचर थलचर नभपर ऐसे तीन प्रकार हैं. बहुरि प्रत्येक मनकरि युक्त सैनी भी हैं तथा मनरहित असैनी भी हैं।
बहुरि इनके भेद कहै हैं,ते वि पुणो वि य दुविहा गन्भजजम्मा तहेव सम्मत्था भोगभुवा गब्भभुवा थलयरणहगामिणो सण्णी १३० ___भाषार्थ-ते छह प्रकार कहे जे तिर्यच ते गर्भज भी हैं बहुरि सम्मूर्च्छन भी हैं बहुरि इनविषै जे भोगभूमिके तियच हैं ते थलचर नधचर ही हैं. जलचर नाहीं हैं बहुरि ते सैनी ही हैं असैनी नाही हैं ।
आगे अठ्याणवै जीव समासनिकू तथा तिर्यचके पिच्यासी भेदनिकू कहै हैं
कन्द (सरण आदि) छाल, नई कोंपल, टहनी, फूल, फल, तथा वीज तोडने पर बराबर टूट जाय वे सप्रतिष्ठित प्रत्येक हैं तथा जो बरावर न टूटे वे अप्रतिष्ठित प्रत्येक हैं ॥३॥ कंदस्स व मूलस्स व सालाखंधस्स वा वि बहुलतरो। छल्ली सा गंतजिया पत्तेजिया तु तणुकदरी ॥४॥
जिन वनस्पतियोंके कन्द, मूल, टहनी, स्कंधकी छाल मोटी है उन्हें सप्रतिष्ठित प्रत्येक ( अनंत जीवोंका स्थान ) जानना चाहिये और जिनकी छाल पतली हो उन्हें अप्रतिष्ठित प्रत्येक मानना चाहिये ॥४॥