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( ४३ ) अथ अन्यत्वानुप्रेक्षा लिख्यते. अण्णं देहं गिदि जणणी अण्णाय होदि कम्मादो। अण्णं होदि कलत्तं अण्णो वि य जायदे पुत्तो॥८॥ ____ भाषार्थ-यह जीव संसारविषै देह ग्रहण करै है सो आपतै अन्य है. बहुरि माता है सो-भी अन्य है. बहुरि स्त्री है सो भी अन्य है. बहुरि पत्र है सो भी अन्य उपजै है. यह सर्व कर्मसंयोग” होय हैं ॥८॥ एवं वाहिरदव्वं जाणदि रूवा हु अप्पणो भिण्णं । जाणं तो वि हु जीवो तत्थेव य रच्चदे मूढो ॥१॥ ___भाषार्थ-ऐसें पूर्वोक्तमकार सर्व वाह्यवस्तुकू अात्मस्वरूपते न्यारा जानै है तोऊ प्रगटपणे जाणता सता भी यह मूढ मोही तिन परद्रव्यनिविष ही राग करै है. सो यह बडी मूर्खता है ॥ ८१॥ जो जाणिऊण देहं जीवसरूपादु तच्चदो भिण्णं । अप्पाणं पि य सेवदि कज्जकरं तस्स अण्णत्तं ॥८॥ ____ भाषार्थ-जो जीव अपने स्वरूप देहकू परमार्थतें भिन्न जानिकरि आत्मस्वरूपकू सेवै है, ध्यावै है ताके अन्यत्वभारना कार्यकारी है. भावार्थ-जो देहादिक परदव्यकू न्यारे जानि अपने स्वरूपका सेवन करै है ताकू न्याराभावना (अ. न्यत्वभावना ) कार्यकारी है। . १ रुवादु इत्यादि पाठः।