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(४१) इक्को रोई सोई इक्को तप्पेइमाणसे दुक्खे । इक्को मरदि वराओणरयदुहं सहदि इक्को वि ७५ __ भाषार्थ-एक ही जीव रोगी होय है, सो ही एक जीव शोकसहित होय है. सो ही एक जीव मानसिक दुःखकरि तलायमान होय है. सो ही एक जीव मरै है. सो ही एक जीव दीन होय नरकके दुःख सहै है. भावार्थ-जीव अकेला ही अनेक अनेक अवस्थाकू धारै है। इक्को संचदि पुण्णं इक्को भुंजेदि विविहसुरसोक्खं इक्को खवेदि कम्मं इक्को वियपावए मोक्खं॥७६ ॥
भाषार्थ-एक ही जीव पुण्यका संचय करै है. सो ही एक जीव देवगतिके सुख भोग है. सो ही एकजीव कर्म की निजरा करै है. सोही एक जीव मोन• पावै है. भा. पार्थ-सो ही जीव पुण्य उपजाय स्वर्ग जाय है. सो ही जीव कर्मनाशकर मोक्ष जाय है । सुयणो पिच्छंतो वि हु ण दुक्खलेसंपि सक्छदे गहिदुं । एवं जाणतो वि हु तोवि ममत्तं ण छंडेइ ॥ ७७ ॥ भाषार्थ-स्वजन कहिये कुटुंब है सो भी या जीवमें दुःख पावै ताकू देखता संता भी दुःखका लेश भी ग्रहण करणेकुं असमर्थ होय है. ऐसे जनता भी प्रगठपणै या कुटंबते बमत्व नाही छोडै है. भावार्य- दुःख आपका आप ही भो.