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क्रमतें तीन पल्य पूरण करै बीचमें घांटि बाषि पावै ते गिणती में नाहीं. ऐसें ही मनुष्यकी जघन्यत लगाय उत्कृष्ट तीनपल्य तीन पल्य पूरा करें. ऐसें ही देव गतिकी जघन्य दश हजार वर्ष लगाय ग्रैवेयक के उत्कृष्ट इकतीस सागरतांई समयाधिकक्रम पूरा करे. ग्रैवेयक के आगे उपजनेवाला एक दोय भव ले मोक्ष ही जाय, तातैं न गिराया ऐसें या भवपरावनका अनन्त काल है ॥ ७० ॥ आगे भावपरिवर्तनकं कहैं हैं, परिणमदि साण्णजीवो विविहकसाएहिं ट्ठिदिणिमित्चेहिं अणुभागणिमित्ते हिं य वर्द्धतो भावसंसारो ॥ ७१ ॥
भाषार्थी - पावसंसारविषै वर्त्तता जीव अनेक प्रकार कमकी स्थितिधकं कारण बहुरि अनुभागबन्धकूं कारण जे अनेक प्रकार कषाय तिनिकरि सैनी पंचेंद्रिय जीव परिणमैं है. भावार्थ - कर्मकी एक स्थितिबन्धकूं कारण कषायनिके स्थानक असंख्यात लोकप्रमाण हैं, तामैं एक स्थितिबंधस्थानमें अनुभागबन्धकं कारण कषायनिके स्थान असंख्यात - लोकप्रमाण हैं. बहुरि योग्यस्थान हैं ते जगत् श्रणीके असंख्यातवें भाग हैं. सो यह जीव तिभिकूं परिवर्तन करे है. सो कैसे ? कोई सैनी मिध्यादृष्टी पर्याप्तकजीव स्वयोग्य सर्व जघन्य ज्ञानावरण प्रकृतिकी स्थिति अन्तःकोटाकोटीसागर प्रमाण बांध, ताके कषायनिके स्थान असंख्यात लोकमात्र हैं. तामें सर्व जघन्यस्थान एकरूप परिणमै तामें तिस एक