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( ३७ ) समयतें लगाय अन्तके समयपर्यंत यहु जीव अनुक्रमः सर्द कालविष उपजै तथा मरै है, भावार्थ-कोई जीव उत्सर्पिणी जो दशकोडाकोडी सागरका काल ताका प्रथम समयविषै जन्म पावै, पीछे दूसरे उत्सर्पिणीके दूसरे समयविषै जन्मै, ऐसे ही तीसरेके तीसरे समयविषै जन्में, ऐसे ही अनुक्रमतें अन्तके समयपर्यंत जन्में, बीचिबीचिमें अन्यसमयनिविष विना अनुक्रम जन्मै सो गिणतीमें नाहीं ऐसे ही अवसर्पिणीके दश कोडाकोड़ी सागरके सपयपूरण करै तथा ऐसे ही मरण करै सोयह अनंत काल होयताकू एक कालपरावर्तन कहिये।
आगे भवपरिवर्तन; कहै हैंणेरइयादिगदीणं अवरहिदिदो वरठिदी जाव । सव्वट्टिदिसु वि जम्मीद जीवो गेवेजपजंतं ॥७॥
भाषार्थ-संसारी जीव नरक आदि चारि गतिकी ज. धन्य स्थिति लगाय उत्कृष्टस्थितिपर्यन्त सर्व स्थितिविष अवेयकपर्यन्त जन्मै । भावार्थ-नरकगतिकी जघन्यस्थिति दश हजार वर्षकी है सो याके जेते समय हैं तेतीवार तो जघन्यस्थितिकी आयु ले जन्म. पीछे एक समय अधिक आयु ले कर जन्मै । पीछे दोय समय अधिक श्रायु ले जन्मै. ऐसे ही अनुक्रमतें तेतीस सागरपर्यन्त श्रायु पूरण करै, बीविधीचिमें घाटि बाधि आयु ले जन्मै तो गिणतीमें नाहीं. ऐसे ही ति. यंच गतिकी जघन्य प्रायु अन्तरमुहूर्त, ताके जेते समय हैं तेतीचार जघन्य आयुका धारक होय पीछे एक समयाधिक