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-बंधदि मुंचदि जीवो प डिसमयं कम्म पुग्गला विविहा गोकम्म पुग्गला वियमिच्छत्त कसायसंजुत्तो ॥६७॥
भाषार्थ - यह जीव या लोक विषे तिष्ठते जे अनेक पकार पुद्गल ज्ञानावरणादि कर्मरूप तथा औदारिकादि शरीर नोकर्मरूपकरि समयसमयप्रति मिध्यात्वकषायनिकरि संयुक्त
संता बांधे है तथा छोडे है. भावार्य - मिथ्यात्व कषायके aa करि ज्ञानावरणादि कर्मका समयमबद्ध अभव्यराशितें अनन्तगुणा सिद्धरा शिके अनन्तवें भाग पुद्गल परमाणुनिका स्कन्धरूप कार्याणवर्गणाकूं समयसमयप्रति ग्रहण करे है. बहुरि पूर्वै ग्रहे थे ते सचामें हैं, तिनमेंसों येते ही समयसमय क्षरे हैं । बहुरि तैसें ही प्रौदारिकादि शरीरनिका समयमबद्ध शरीरग्रहण के समयतें लगाय आयुकी स्थितिपर्यन्त ग्रहण करै है वा छोडे है. सो अनादि कालतैं लेकर अनन्तवार ग्रहण करना वा छोडना हो है. तहां एक परिवर्तनका प्रारंभविषै प्रथमसमय में समयमबद्धविषै जेते पुद्र परमाणु जैसे स्निग्ध रूक्ष वर्ण गन्ध रूप रस तीव्र मंद मध्यम भाव करिग्रहे होंय तेते ही तैसें ही कोई समयविष फेरि ग्रहण में था तब एक कर्म परावर्त्तन तथा नोकपरावर्त्तन होय. बीचिमें अनन्तवार और भांतिके परमारखू ग्रहण होंय ते न गिणिये. जैसेके तैसे फेर महाकूं अनन्ता काल गीतै, ताकूं एक द्रव्यपरावर्त्तन कहिये. ऐसें या जीवजे. या लोकविषे अनन्ता परावर्धन किये ।