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* या प्रकार एक ही भवमें एक ही प्राणीके अठारह नाते भये, ताका उदाहरण कहा. यह संसारकी विचित्र विडंबना है. यामें कछु भी पाश्चर्य नहीं है। ... आगे पांच प्रकार संसारके नाम कहै हैं,संसारो पंचविहो दव्वे खत्ते तहेव काले य । भवभमणो य चउत्थो पंचमओ भावसंसारो ॥६६॥ ___ भाषार्थ-संसार कहिये परिभ्रमण सो पांच प्रकार हैट्रन्ये कहिये पुदल द्रव्यविषै ग्रहणत्यजनरूप परिभ्रमण.बहुरि क्षेत्रे कहिये श्राकाशके प्रदेशनिषि स्पर्शनेरुप परिभ्रमण. बहुरि काले कहिये कालके समयनिविष उपजने विनसनेरूप परिभ्रमण. बहुरि तैसें ही भव कहिये नारकादि भवका ग्रहण त्यजनरूप परिभ्रमण बहुरि भाव कहिये अपने कपाययोगनिका स्थानकरूप जे भेद तिनका पलटनेरूप परिभ्रपण. ऐसे पंच प्रकार संसार जानना॥६६॥ भार्गे इनिका स्वरूप कहै हैं । प्रथम ही द्रव्य परिवर्तनकू कहै हैं ।
* यह अठारहनातेको कथा ग्रंथान्तरसे लिखा गई है यथाबालय हि मुणि सुवयणं तुज्झ सरिसा हि अट्ट दहणता । पुत्तु भतिब्बउ भायउ देवरु पत्तिय हु पत्तिज ॥१॥ तुहु पियरो मुहुपियरो पियामहो तहय हवइ भत्तारो। भायउ तहावि पुत्तो ससुरो हवइ बालयो मज्म ॥२॥ जाणणी हुह भला पियामही तह य मायरी सवई । हवा तह गासू ए कहिया भवदहणता ॥३॥