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आगे कहै हैं कि या प्राणीक एक ही भवविषै अनेक संबंध होय हैं
तो वि भाओ जाओ सोविय भाओ वि देवरो होदि । माया हो सवती जणणो विय होइ भत्तारो ६४ एयमि भवे एदे संबंधी होंति एयजीवस्स । अण्णवे किं भण्णइ जीवाणं धम्महिदाणं ६५
भाषार्थ - एक जीव एक भवविषै एता संबन्ध होय है aौ धर्मरहित जीवनिकै अन्य भव विषै कहा कहिये ? ते संबन्ध कौन कौन ? सो कहिये है. पुत्र तौ भाई हूवा बहुरि जो भाई था सो ही देवर भया. बहुरि माता थी सो सौति भई बहुरि पिता था सो भरतार हुवा. पता सम्बन्ध वस न्ततिलका वेश्या अरु घनदेवके अरु कमला के अरु वरुणकै हूवा विनिकी कथा ग्रन्थान्तरतें लिखिये है-एक भवमें अठारह नातेकी कथा ।
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मालवदेश उज्जयनीविषै राजा विश्वसेन. तहां सुदत्त नाम श्रेष्ठी बसै, सो सोलह कोटि द्रव्यको धनी. सो वसन्ततिलकानाम वेश्यासूं आशक्त होय ताहि घरमें घाली. सो गर्भवती भई. तब रोगसहित देह भई तब घरमें काढि दई. बसन्ततिलका आपके घरहीमें पुत्र पुत्रीको जुगल जायो । सो वेश्या खेद खिन्न हो, तिनि दोऊ बालकनिकूं जुदे जुदे रत्न कम्बल में लपेटि पुत्रीको तो दक्षिण दरवाजे क्षेपी. सो तां प्रयाग निवासी विजारेने लेकर अपनी स्त्रीको सौंपी...