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( २६ ) ही मनोवांछित मिले. भावार्थ-बडे पुण्यवानकै भी वांछित बस्तुमें किछु कमती रहै, सर्व मनोरथ तो काहूके पुरै नाहीं तब सर्व सुखी काहेरौं होय ? कस्स वि णत्थि कल अहव कलचं ण पुत्तसंपत्ती अह तेसिं संपत्ती तह वि सरोओ हवे देहो ॥५१॥
भाषार्थ-कोई मनुष्यकै तो स्त्री नाहीं है. कोई कै जो स्त्री है तौ पुत्रकी प्राप्ति नाहीं है. कोई कै पुत्रकी प्राप्ति है तो शरीर रोगसहित है। अह णीरोओ देहो तो धणधण्णाणणेय सम्पत्ति। अह धणधण्णं होदि हुतो मरणं झत्ति ढुक्केइ ॥५२॥ ___भाषार्थ-जो कोईकै नीरोग देह भी हो तो धन धान्य की प्राप्ति नाहीं है. जो धन-धान्यकी भी प्राप्ति हो जाय तो शीघ्र मरण होय जाय है। कस्स वि दुद्दकलित्वं कस्स वि दुव्वसणवसणिओ पुत्तो कस्स वि अरिसमबंधू कस्स विदुहिदा विदुच्चरिया ॥ ___ भाषार्थ-या मनुष्यभदमें कोईकै तो स्त्री दुराचारिणी है. कोईकै पुत्र युवा आदिक व्यसनोंमें रत है, कोईकै शत्रु समान कलही भाई है. कोईकै पुत्री दुराचारिणी है । कस्स वि मरदि सुपुत्तो कस्स वि माहिला विणस्सदे इट्ठा करस विअग्गिपलिवंगिहं कुडंबंच डझेइ ५४