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१३ पद्रह भेदोसे सिद्ध, लोच किसलिये ? यात्राका हेतु, सत्पुरुपका उपदेश निष्कारण, महावीरस्वामी, ज्ञानीका सगमें व्यवहार, वाडा और मताग्रह, जैनमार्ग, शश्वतमार्ग, धर्मका मिथ्याभिमान, लिंगधारी अनत वार भटका, मनुष्यदेहकी सार्थकता ७४२ १४ देहका प्रत्यक्ष अनुभव होनेपर भी मूर्च्छा, देहात्मबुद्धि और सम्यक्त्व, समकिती की दशा छिपी नही रहती, पश्चक्खान, कल्पित ज्ञानी, समकित और मिथ्यात्वीकी वाणी, अतरकी गाँठ, साधुका आहार, तृष्णा कैसे कम हो ? कत्याणकी कुजी, सम्यक्त्व प्राप्ति, सूत्र और अनुभव, घातीकर्म, निकाचितकर्म, यथार्थज्ञान, जगतकी झझट और कल्पना, सम्यग्ज्ञान, तरनेका कामी, जीवका स्वरूप और कुलधर्म आदिका आग्रह, मनुष्यभवमें विचार कर्तव्य -
९५८ श्री व्याख्यानसार --१
१ प्रथम गुणस्थानक, ग्रथिभेद, चौथो गुणस्थानक - वोवीज,
२ गुणस्थानको आत्मानुभव,
३ केवलज्ञान, मोक्ष
७ इस कालमें मोक्ष
१२ सकाम और अकाम निर्जरा
१६ लौकिक और लोकोत्तरमार्ग
१९ अनानुवधी कषाय
२४ केवलज्ञानसवधी विवेचन, अनुभवगम्य और बुद्धिगम्यं निर्णय
२७ ज्ञानक्षीणतासे मतभेद
२८ श्रुतश्रवण आदि निष्फल
२९ छोटी-छोटी शकाओमें उलझना
३० ग्रथिभेद
३१ पुरुषार्थसे सम्यक्त्वप्राप्ति
३२ कर्मप्रकृति और सम्यक्त्वका सामर्थ्य
[ ५२ ]
F
७८४
७४९
७४९
७४९
७४९
७५०
७५०
७५०
७५१
३३ सम्यक्त्वका ज्ञान विचारवानको
३४ सम्यक्त्वप्राप्ति में अतराय
७५३
३६ इस कालमें मोक्ष और ज्ञान, दर्शन, चारित्र ७५३
७५१
७५२
७५२
७५२
७५३
७५३
७५३
७५३
४१ सामायिक और कोटियाँ ४३ मोक्षमार्ग तलवारकी घार जैसा ४४ वादर और बाह्य क्रियाका निपेध ४९ ज्ञानीकी आज्ञा और स्वच्छदता
५१ छ. पदकी नि शकता
५२ श्रद्धा दो प्रकारसे
५३ मतिज्ञान और मन पर्ययज्ञान
५७ सम्यक्त्व और निश्चयसम्यक्त्व होनेका
ज्ञान
६० सम्यक्त्वके बाद सादिसात ससार
६२ आत्मज्ञान आदिका सूक्ष्म स्वरूप प्रकाशित करनेमें हेतु
६३ कर्मके प्रकार
६५ कर्मवध प्रकार
६६ सम्यक्त्वके अन्योक्तिसे दूषण, उसकी
महत्ता
६७ सम्यक्त्वका केवलज्ञानको ताना
६८ ग्रन्थ आदि पढनेमें मगलाचरण और
अनुक्रम
६९ आत्मजनितसुख और मोक्षसुख
७० केवलज्ञानीकी पहचान
७१ केवलज्ञानका स्वरूप समझनेके लिये
मतिश्रुतज्ञान अपेक्षि
७२ मतिज्ञान और श्रुतज्ञान
७३ ज्ञानीके मार्ग और आज्ञासे चलनेवाले
को कर्मबध नही, फिर भी 'ईर्यापथ' की क्रिया
७४ विद्यासे कर्मबधन और मुक्ति
) ७६ क्षेत्रसमासकी बातोमें श्रद्धा
७७ ज्ञानके आठ प्रकार
७९ कर्म और निर्जरा
७० 'मोक्ष नही होता, परन्तु समझमें आता
है' का तात्पर्य
८१ नव पदार्थ सद्भाव
८२ वेदात और जिनदर्शन
८३ नव तत्त्वका जीव - अजीवमे समावेश
८४ निगोद और कदमूलमें अनत जीव
८५ सम्यक्त्व होनेके लिये
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