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आशातनादि
सम्यक्त्व, सत्पुरुपकी
टालना, सत्सगका फल
४ भक्ति सर्वोत्कृष्ट मार्ग, आत्मानुभवी कौन ? ज्ञान, सम्यग्दृष्टिकी जागृति, ज्ञानी और मिथ्यादृष्टि, बारह उपागका सार--- वृत्तियोका क्षय करना, चौदह गुणस्थानक, वृत्तियोकी ठगाई, सुपच्चक्खान, दुपच्चक्खान, पुरुषार्थधर्मका मार्ग . खुला, श्रेणिक, चार लकडहारेके दृष्टातसे चार प्रकार के जीव, पहचानके अनुसार माहात्म्य, ज्ञानीकी पहचान, ज्ञानीको अतर्दृष्टि से देखनेके बाद रागकी अनुत्पत्ति, ससाररूपी शरीरका वल विषयादिरूप कमरपर, ज्ञानी पुरुषके बोधका सामर्थ्य, श्री महावीरस्वामीकी अद्भुत समता, तीर्थंकर ममत्व करते ही नही, इस कालमें चरमशरीरी और एकावतारी, केशीस्वामीकी सरलता, ज्ञानीपुरुषकी आज्ञा, गौतमस्वामी और आनदश्रावक, सास्वादनस मकित, निग्रंथ गुरु, सद्गुरुमे सदेव और केवली, सद्गुरु और असदगुरुको परखनेकी शक्ति, मिथ्यात्वरूपी समुद्रका खारापन दूर करना, सबसे वडा रोग मिथ्यात्व, दुराग्रह और स्वच्छद छोडने से कल्याण, उदय-कर्म, मोहर्गाभित और दु खर्गाभित वैराग्य, सत्सगका माहात्म्य ६९९ ५ ज्ञानीको योग होता है प्रमाद नही होता, स्वभावमे रहना और विभावसे छूटना, स्वच्छद, अहकार आदिसे तपश्चर्या नही करना, सद्गरुकी आज्ञासे साधन करे, चौदह पूर्वधारी भी निगोदमें आस्रव, सवर, वृत्तियोको अतर्मुख करना, कर्मसे पुरुषार्थ बलवान, मिथ्यात्वरूपी भसा, मिथ्यादृष्टि और समकितीके जप, तप आदि, जैन धर्ममें दयाका सूक्ष्म वर्णन, अपूर्व वचनोके अतर परिणमनसे उल्लास एव भान, केशीस्वामीकी कठोर वाणी, कल्याणका मुख्य मार्ग, आस्रव ज्ञानीको
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माक्ष हतु-उपयाग जागृातस, उपयोगक दो प्रकार, द्रव्यजीव, भावजीव, कर्मवध और उसका अभाव उपयोगानुसार ६ जीवका सामर्थ्य, जीवकी अनादि भूल, रात्रिभोजनके दोप, ज्ञानीका सब कुछ सीधा, अज्ञानीका सब कुछ उलटा, ज्ञानी क्रोधादिका वैद्य, ज्ञानसे निर्जरा, स्वस्वरूप समझनेके लिये सिद्धस्वरूपका विचार, भूल होनेपर साधुता और श्रावकपन, वस्तुओपर तुच्छभाव लानेसे इन्द्रियवशता, लौकिक-अलौकिक भाव, वीजज्ञानका प्रगट होना, मुक्तिमे प्रत्येक आत्मा भिन्न, स्मशान-वैराग्य, आज्ञा स्व व सयमके लिए, कठिन मार्गका रूप पण, केशीस्वामी और गौतमस्वामीकी सरलता, आत्मोन्नतिके लिए लोकलाज त्याज्य, शुद्धतापूर्वक सद्व्रतका सेवन, मतरहित हितकारी, आवश्यकके छ प्रकार, हीन पुरुषार्थकी बातें, उपादान, और निमित्तकारण, मीराबाई और नाभा भगत की भक्ति, सामायिकका विधान, तिथिमर्यादा आत्मार्थके लिये क्रिया मोक्षके लिये, लोग तो आत्माका ही त्याग कर देते हैं, पचमकालमें गुरु, अध्यात्मज्ञान, अध्यात्मशास्त्र, द्रव्यअध्यात्मी, मोक्षमार्ग में विघ्न, विचारदशामें अतर, अध्यवसायका क्षय ज्ञानसे, मोक्षकी अपेक्षा सत्सग अधिक यथार्थ, ढूँढिया सम्प्रदाय, यथाख्यात चारित्र, भय अज्ञानसे, वीतरागसयम, भ्राति, शका, आशका, आगकामोहनीय, मिथ्या प्रतीति, अप्रतीति
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७ यह जीव क्या करे ? समझ आ जानेसे आत्मा सहज में प्रगट हो, अत करण शुद्धिसे ज्ञान अपने आप, बाह्य त्याग - किसलिये श्रेष्ठ ? मायाका भुलावा, भक्ति माया जीती जाये, जनक- विदेहीकी दशा, सच्चे शिष्य - गुरु, परम ज्ञानी गृहस्थावस्था में मार्ग नही चलाते,
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