Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ७, ४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे पदमीमांसा संभवादो। सिया सादिया, अणुक्कस्सपदादो जहण्णपदस्स उप्पत्तिदंसणादो । अणादियभावो णत्थि, सव्वकालं जहण्णपदेणेव अवडिदजीवाणुवलंभादो। सिया अधुवा, अजहण्णपदादो जहण्णपदुप्पत्तीदो। जहण्णस्स धुवभावो णत्थि, जहण्णपदे चेव सम्वकालमवद्विदजीवाणवलंभादो। सिया जुम्मा, जहण्णाणभागफद्दयवग्गणाविभागपडिच्छेदाणं कदजुम्मसंखाणमुवलंभादो। भोजपदं णत्थि । सिया णोम णोविसिट्ठा, वढिदे हाइदे च जहण्णत्ताभावादो । एवं जहण्णपदं पंचवियप्पं ५ ।
संपहि पंचमसुत्तस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहा--णाणावरणीयस्स अजहण्णवेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुकस्सा; एदेसिं दोण्हं पदाणं तत्थुवलंभादो । सिया सादिया, अजहण्णपदविसेसं पडुच्च सादियत्तदंसणादो। सिया अणादिया, अजहण्णपदसामण्णं पडुच्च आदीए अभावादो । सिया धुवा, अजहण्णपदसामपणस्स तिसु वि कालेसु विणासाभावादो । सिया अधुवा, अजहण्णपदविसेसं पडुच्च विणासदंसणादो । सिया जुम्मा, अजहण्णाणुभागफद्दयवग्गणाविभागपडिच्छेदेसु कदजुम्मसंखाए चेव उवलंभादो । सिया
सम्भावना है । कश्चित् सादि है, क्योंकि, अनुत्कृष्ट पदसे जघन्य पदको उत्पत्ति देखी जाती है । अनादिता नहीं है, क्योंकि, सदा केवल जघन्य पदके साथ रहनेवाले जीव नहीं पाये जाते । कथञ्चित् अध्रुव है, क्योंकि, अजघन्य पदसे जघन्य पद उत्पन्न होता है। जघन्य पदके ध्रुवता नहीं है, क्योंकि, जघन्य पदमें ही सदा जीवोंका अवस्थान नहीं पाया जाता । कथञ्चित् युग्म है, क्योंकि, जघन्य अनुभाग सम्बन्धी स्पर्धकी, वर्गणाओं और अविभागप्रतिच्छेदोंकी कृतयुग्म संख्याएं पायी जाती हैं। ओजपद नहीं है। कथञ्चित् नोमनोविशिष्ट है, क्योंकि, वृद्धि व हानिके होनेपर जघन्यपना नहीं रह सकता। इस प्रकार जघन्य पद पाँच (५) भेद स्वरूप है।
अब पाँचवें सूत्रका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है-ज्ञानावरणीयकी अजघन्य वेदना कथश्चित् उत्कृष्ट है और कथञ्चित् अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, उसमें ये दोनों पद पाये जाते हैं । कथश्चित् सादि है, क्योंकि, अजघन्य पदविशेषकी अपेक्षा सादिता देखी जाती है। कथञ्चित् अनादि है, क्योंकि, अजघन्य पद सामान्यकी अपेक्षा आदिका अभाव है। कथञ्चित् ध्रुव हैं, क्योंकि, अजघन्य पद सामान्यका तीनों ही कालोंमें विनाश नहीं होता । कथञ्चित् अध्रुव है, क्योंकि, अजघन्य पदविशेषकी अपेक्षा उसका विनाश देखा जाता है। कथञ्चित् युग्म है, क्योंकि, अजघन्य अनुभागके स्पर्धकों, वर्गणाओं और अविभागप्रतिच्छेदोंकी कृतयुग्म संख्या ही
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