Book Title: Shatkhandagama Pustak 12
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४, २, ७, ४,] वेयगमहाहियारे वेयणभावविहाणे पदमीमांसा
एत्थ णाणावरणीयसामण्णे णिरुद्धे ओजपदं णत्थि । कुदो ? फद्दएसु वग्गणासु अविभागपलिच्छेदेसु च कदजुम्मभावस्सेव उवलंभादो । कधमणादियपदस्स संभवो ? ण, णाणावरणीयभावसामण्णे णिरुद्धे अणादियत्ताविरोहादो । ण च सादियपदस्स अभावो, विसेसे अप्पिदे तस्स वि उवलंभादो । ण च धुवत्ताभावो, सामण्णप्पणाए तदुवलंभादो । ण च अधुवत्तस्स अभावो, अणुभागविसेसप्पणाए विसिडेगजीवप्पणाए च अधुवत्तदंसणादो । तदो पढमसुत्तं बारहभंगप्पयं त्ति दट्टव्वं १२ ।
पुणो बिदियपुच्छासुत्तस्स अत्थो वुच्चदे । तं जहा-उक्कस्सअणभागवेयणा सिया अजहण्णा, जहण्णादो उवरिमसव्ववियप्पाणमजहण्णम्हि दंसणादो। सिया सादिया. अणुक्कस्साणुभागे द्विदस्स उक्कस्साणुभागुप्पत्तीदो। उक्कस्सपदस्स अणादित्तं णत्थि, णाणाजीवप्पणाए वि उक्कस्सपदस्स अंतरदसणादो। सिया अधुवा, उप्पण्णुकस्सपदस्स णिय मेण विणासदसणादो । उकस्सपदस्स धुवत्तं णत्थि, णाणाजीवप्पणाए वि उक्कस्सपदविणासदंसणादो। सिया जुम्मा, उक्कस्साणुभागफद्दयवग्गणाविभागपडिच्छेदेसु कदजुम्म
यहाँ ज्ञानावरणीय सामान्यकी विवक्षा करनेपर ओज पद नहीं है, क्योंकि स्पर्धकों, वर्गणाओं और अविभागप्रतिच्छेदोंमें कृतयुग्मता ही पायी जाती है।
शङ्का–यहाँ अनादि पदकी सम्भावना कैसे है ?
समाधान नहीं, क्योंकि ज्ञानावरणीय भावसामान्यकी विवक्षा होनेपर उसके अनादि होनेमें कोई विरोध नहीं आता।
सादि पदका भी यहाँ अभाव नहीं है, क्योंकि, विशेषकी विवक्षा करनेपर वह भी पाया जाता है । ध्रुव पदका भी अभाव नहीं है, क्योंकि, सामान्यकी मुख्यता होनेपर वह भी पाया जाता है। अध्रुव पदका भी अभाव नहीं है, क्योंकि, अनुभागविशेषकी अथवा विशिष्ट एक जीवकी विवक्षा करनेपर अध्रुवपना देखा जाता है। इस कारण प्रथम सूत्र बारह (१२) भङ्ग स्वरूप है, ऐसा समझना चाहिये।
- अब द्वितीय पृच्छासूत्रका अर्थ कहा जाता है। वह इस प्रकार है--उत्कृष्ट अनुभागवेदना कथश्चित् अजघन्य है, क्योंकि, अजघन्य पदमें जघन्यसे आगेके सभी विकल्प देखे जाते हैं। कथश्चित् सादि है, क्योंकि, अनुत्कृष्ट अनुभागमें स्थित जीवके उकृष्ट अनुभाग उत्पन्न होता है। उत्कृष्ट पदके अनादिता नहीं है, क्योंकि, नाना जीवोंकी विवक्षा होनेपर भी उत्कृष्ट पदका अन्तर देखा जाता है। कथञ्चित् अध्रुव है, क्योंकि, उत्पन्न हुए उत्कृष्ट पदका नियमसे विनाश देखा जाता है। उत्कृष्ट पदके ध्रुवपना नहीं है, क्योंकि, नाना जीवोंकी विवक्षा होनेपर भी उत्कृष्ट पदका विनाश देखा जाता है। कथञ्चित् युग्म है, क्योंकि, उत्कृष्ट अनुभाग स्वरूप स्पर्धकों, वर्गणाओं और अविभागप्रतिच्छेदोंमें कृतयुग्म संख्या ही पायी जाती है। कथश्चित्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org