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( ५६ )
ग. ग्रहण और स्मरण का विश्लेषण
घ. ग्रहण और स्मरण में अभेद या सारूप्य
ङ. 'पीतः शङ्खः' के व्यवहार का समर्थन
१२ 'नेदं रजतम्' की सिद्धि-मीमांसक मत क. प्रभाकर-मत से अभाव का खण्डन
१३ मिथ्याज्ञान की सत्ता है— शंकर का उत्तरपक्ष क. रजत का सीपी पर आरोप
१४ आरोप के विषय में शंका-समाधान क. मीमांसकों के तर्कों का उत्तर
१५ माध्यमिक बौद्धों का खण्डन - भ्रमविचार क. विज्ञानवादियों का खण्डन -- भ्रमविचार
ख. नैयायिकों की अन्यथाख्याति का खण्डन १६ ' इदं रजतम्' में ज्ञान की एकता - शङ्का-समाधान १७ त्रिविधसत्ता तथा अनिर्वचनीय ख्याति
१८ माया और अविद्या की समानता
क. अविद्या की सत्ता के लिए प्रमाण
ख. ' अहमज्ञः' का प्रत्यक्ष अनुभव और नैयायिक-खण्डन १९ दूसरी विधि से 'अहमज्ञ: ' के द्वारा अविद्या की सिद्धि
२० अनुमान से अविद्या की सिद्धि
२१ शब्द- प्रमाण से अविद्या की सिद्धि
२२ शाक्त-सम्प्रदाय में माया-शक्ति
२३ संसार अविद्याकल्पित है— शंका-समाधान
२४ प्रपंच की सत्यता का खण्डन - सत्य की निवृत्ति नहीं २५ आत्मज्ञान से अविद्या नाश--- राजपुत्र का दृष्टान्त
२६ प्रथम सूत्र का उपसंहार और अनुबन्ध
क. चतुस्सूत्री के अन्य सूत्र – स्वरूप और तटस्थ लक्षण परिशिष्ट - १ प्रमुख दर्शन-ग्रन्थों की सूची परिशिष्ट - २ प्रमुख दार्शनिक और उनकी कृतियाँ
परिशिष्ट - ३ मूलग्रन्थ में निर्दिष्ट ग्रन्थ और ग्रन्थकार परिशिष्ट - ४ मूलग्रन्थ के उद्धरण
परिशिष्ट - ५ शब्दानुक्रमणी
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