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भिनभिनान
इस श्लोक का अर्थ हिन्दी के दोहे में इस प्रकार कहा है -
मृत्यु से क्यों डरत है, मृत्यु छोड़त नाय ।
अजन्मा मरता नहीं, कर यत्न नहीं जन्माय ॥
समवाय ७
सिद्ध भगवन्तों का जन्म नहीं होता है इसलिये मरण भी नहीं होता है । अन्य सिद्धान्तवादी तो कहते हैं - " जो जन्मता है सो मरता है और जो मरता है सो जन्मता है।" किन्तु जैन सिद्धान्त ऐसा नहीं कहता है। उसका कथन है कि जो जन्मता है वह तो अवश्य मरता है। चाहे राजा, राणा, तीर्थंकर चक्रवर्ती भी क्यों न हो परन्तु जो मरता है उनमें से कोई जन्म लेता है तो कोई जन्म नहीं भी लेता है। जैसा कि कहा है
जातस्य हि ध्रुव मृत्युः, मृतस्य जन्म वा न वा । अकर्मा याति निर्वाणं, सकर्मा जायते पुनः ॥ यही बात हिन्दी दोहे में कही है
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अतः बुद्धिमानों का कर्तव्य है कि लेना ही न पड़े ।
जन्म संग मृत्यु लंगा, मृत जन्मे अरु नाय । कर्म सहित फिर जन्मता, कर्म रहित सिद्ध थाय ॥
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धर्म कार्य में ऐसा पुरुषार्थ करें कि बार-बार जन्म
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शरीर की ऊंचाई सात हाथ की थी। इस विषय में ऐसा समझना चाहिए कि- अनुयोगद्वार सूत्र में अंगुल के तीन भेद बतलाये गये हैं। प्रमाण अंगुल, आत्म अंगुल और उत्सेधांगुल । अवसर्पिणीकाल के पहले तीर्थंकर अथवा पहले चक्रवर्ती की अवगाहना ( शरीर की ऊंचाई) पांच सौ धनुष की होती है। उनके अंगुल को प्रमाण अंगुल कहते हैं । जिस समय जो मनुष्य होते हैं उनके अपने अपने अंगुल को आत्मांगुल कहते
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हैं। अन्तिम तीर्थङ्कर (महावीर स्वामी) के अङ्गुल के आधे भाग को उत्सेधाङ्गुल कहते हैं । अथवा इस अवसर्पिणी काल के १० ।। हजार वर्ष बीत जाने पर जो मनुष्य होंगे उनके अङ्गुल को उत्सेधांगुल कहते हैं । उत्सेधाङ्गुल से प्रमाण अङ्गुल एक हजार गुणा अधिक बड़ा होता है। जम्बूद्वीप आदि शाश्वत वस्तुओं को नापने के लिए प्रमाण अङ्गुल काम में आता है। जिस समय के जो मनुष्य होते हैं उस समय के कुआँ तालाब मकान आदि नापने के लिये आत्माङ्गुल काम आता है। चार गति के जीवों के शरीर की ऊंचाई (लंबाई ) चौड़ाई नापने के लिये उत्सेधाङ्गुल काम में आता है। इसी उत्सेधाङ्गुल प्रमाण से भगवान् महावीर स्वामी सात हाथ ऊंचे थे। आत्माङ्गुल (अपने खुद के अङ्गुल) से तो वे साढ़े तीन हाथ के थे। आत्माङ्गुल
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