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समवायांग सूत्र
. विमलवाहणे सीमंकरे, सीमंधरे खेमकरे खेमंधरे ।
दढधणू दसधणू सयधण पडिसई सुमइत्ति ।। . भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में दस कुलकर होंगे, .. उनके नाम इस प्रकार होंगे - १. विमलवाहन, २. सीमंकर, ३. सीमंधर, ४. क्षेमंकर, ५. क्षेमंधर, ६. दृढधनु, ७: दसधनु, ८. शतधनु, ९. प्रतिश्रुति और १०. सुमति। ये दस कुलकर होंगे।
भावी तीर्थकर पद आगामी उत्सर्पिणी काल के चौबीस तीर्थङ्करों के नाम
जंबूहीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउव्वीसं तित्थयरा भविस्संति, तंजहा -
महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे । सव्वाणुभूई अरहा, देवस्सुए य होक्खइ ॥ ७६॥ उदए पेढालपुत्ते य, पोट्टिले सत्तकित्ति य। मुणिसुव्वए य अरहा, सव्वभाव विऊ जिणे ॥ ७७॥ अममे णिक्कसार य, णिप्पुलाए य णिम्ममे । चित्तउत्ते समाही य, आगमिस्साण होक्खइ ।। ७८॥ संवरे जसोधरे अणियट्टी य, विजए विमलेति य। देवोववाए अरहा, अणंतविजए इय।। ७९॥ एए वुत्ता चउव्वीसं, भरहे वासम्मि केवली ।
आगमिस्साणं होक्खंति, धम्मतित्थस्स देसगा ॥८०॥ कठिन शब्दार्थ - सव्वभावविऊ - सब भावों के जानने वाले, धम्मतित्थस्स देसगाधर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले, धर्मोपदेशक ।
भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थङ्कर होंगे, उनके नाम इस प्रकार होंगे - १. महापद्म, २. सूर्यदेव, ३. सुपार्श्व, ४. स्वयंप्रभ, ५. सर्वानुभूति, ६. देवश्रुत, ७. उदय, ८. पेढालपुत्र. ९. पोट्टिल, १०. शतकीर्ति, ११. मुनिसुव्रत, १२. सब भावों के जाननेवाले, रागद्वेष के विजेता तीर्थङ्कर अमम, १३. निष्कषाय,
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