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समवायांग सूत्र
द्वीप है, इस प्रकार कुल मिला कर सात लाख योजन हुए।। ७००००० ॥ माहेन्द्र नामक चौथे देवलोक में आठ लाख विमान कहे गये हैं। ८०००००॥ श्री धर्मनाथ स्वामी के समय में पुरुषसिंह नामक पांचवां वासुदेव दस लाख वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोग कर पांचवीं नरक के नैरयिकों में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ॥ १००००००॥ . समणे भगवं महावीरे तित्थयर भवग्गहणाओ छटे पोट्टिल भवग्गहणे एगं वासकोडिं सामण्ण परियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सव्वट्ठविमाणे देवत्ताए उववण्णे ॥१००००००० ॥ उसभसिरिस्स भगवओ चरिमस्स य. महावीर वद्धमाणस्स एगा सागरोवम कोडाकोडी अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ १००००००००००००००॥
कठिन शब्दार्थ - तित्थयर भवग्गहणाओ - तीर्थंकर भव ग्रहण करने से पूर्व।
भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी तीर्थङ्कर भवग्रहण करने से पूर्व छठे पोट्टिल के भव में एक करोड़ वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन कर सहस्रार नामक आठवें देवलोक के सर्वार्थविमान में देव रूप से उत्पन्न हुए ॥ १००००००० ॥
विवेचन - छह भवों की गिनती टीकाकार ने इस प्रकार बतलाई है - (६) भगवान् । महावीर स्वामी का जीव छठे भव में पोटिल नामक राजा हुआ था। राजपाट छोड़ कर दीक्षा अङ्गीकार की। एक करोड़ वर्ष तक संयम का पालन कर आठवें देवलोक में देव हुए। (५) यह पांचवां देव भव हुआ। (४) वहाँ से चव कर छत्राग्र नगर में नन्द राजा हुआ। राजपाट छोड़ कर दीक्षा अङ्गीकार की। एक लाख वर्ष तक संयम का पालन किया और मास मास खमण की तपस्या की अर्थात् ११८५६४५ मास खमण किये। (३) वहाँ से दसवें देवलोक के पुष्पोत्तर विमान में उत्पन्न हुए। (२) वहाँ से चव कर ब्राह्मण कुण्ड ग्राम में ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या देवानन्दा की कुक्षि में आये। (१) वहाँ ८२ दिन रहने के बाद इन्द्र की आज्ञा से हरिनैगमेषी देव ने वहाँ से संहरण कर क्षत्रिय कुण्ड ग्राम नगर में सिद्धार्थ राजा की पटरानी श्री त्रिशला देवी की कुक्षि में रखे।
इस प्रकार पोट्टिल का भव छठा गिना गया है।
प्रथम तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव स्वामी से लेकर चौवीसवें तीर्थङ्कर भगवान् महावीर स्वामी तक बयालीस हजार से कुछ अधिक वर्ष कम एक कोडाकोडी सागरोपम का अन्तर कहा गया है ॥ १०००००००००००००० ॥
एक से लेकर क्रमशः बढ़ते हुए एक कोडाकोडी तक की संख्या कही गई है। .
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