Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 439
________________ ४२२ समवायांग सूत्र कालधर्म को प्राप्त हो जाता है तब वे नौ निधियाँ वापिस गंगा (जाह्नवी) नदी के मुख पर चली जाती हैं। इस प्रकार चक्रवर्ती के १४ रत्न तो अशाश्वत हैं और नौ निधियाँ शाश्वत हैं। . चक्रवर्तियों के माताओं के नाम जंबूहीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टि मायरो होत्था, तंजहा - समंगला जसवई भहा, सहदेवी अडरा सिरीदेवी तारा जाला मेरा, वप्पा चुल्लणी अपच्छिमा ।। ४८॥ भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में बारह चक्रवर्तियों की माताएं हुई थीं, उनके नाम इस प्रकार हैं - १. सुमंगला, २. यशस्वती, ३. भद्रा, ४. सहदेवी, ५. अचिरा, ६. श्री, ७. देवी, ८. तारा, ९. ज्वाला, १०. मेरा, ११. वप्रा, १२. चुलनी ।। ४८ ॥ बारह चक्रवर्तियों के नाम जंबूहीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टी होत्था, तंजहा- . भरहो सगरो मघवं, सणंकुमारो य रायसहूलो ।, संती कुंथु य अरो हवइ, सुभूमो य कोरव्वो ॥४९॥ णवमो य महापउमो, हरिसेणो चेव रायसहूलो । जयणामो य णरवई, बारसमो बंभदत्तो य॥५०॥ कठिन शब्दार्थ - रायसहूलो - राजाओं में शार्दूल (सिंह के समान), कोरव्वो - कुरु वंश में उत्पन्न हुआ। भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में बारह चक्रवर्ती हुए थे उनके नाम इस प्रकार हैं - १. भरत, २. सगर, ३. मघवा, ४. सनत्कुमार, ५. शान्तिनाथ. ६. कुन्थुनाथ, ७. अरनाथ, ८. सुभूम, ९. महापद्म, १०. हरिसेन, ११. जयसेन, १२. ब्रह्मदत्त ।। ४९-५०॥ बारह चक्रवर्तियों के स्त्री रत्नों के नाम एएसिं बारसण्हं चक्कवट्टीणं बारस इत्थी रयणा होत्था, तंजहा - पढमा होइ सुभद्दा, भद्द सुणंदा जया य विजया य। किण्हसिरी सूरसिरी, पउमसिरी वसुंधरा देवी ॥५१॥ लच्छीमई कुरुमई, इत्थी रयणाण णामाई । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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