Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 438
________________ ४२१ चक्रवर्ती-पद अवसर्पिणी काल के चक्रवर्तियों के पिताओं के नाम जंबूहोवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए बारस चक्कवट्टि पियरो होत्था, तंजहा - उसभे सुमित्ते विजए, समुहविजए य आससेणे य। विस्ससेणे य सूरे, सुदंसणे कत्तवीरिए चेव ॥ ४६॥ पउमुत्तरे महाहरी, विजए राया तहेव य। बंभे बारसमे उत्ते, पिउणामा चक्कवट्टीणं ।। ४७॥ . भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में बारह चक्रवर्तियों के पिता हुए थे, उनके नाम इस प्रकार हैं - १. ऋषभदेव, २. सुमित्र विजय, ३. समुद्रविजय, ४. अश्वसेन, ५. विश्वसेन, ६. शूर, ७. सुदर्शन, ८. कृतवीर्य, ९. पद्मोत्तर, १०. महाहरि, ११. विजय, १२. ब्रह्म। ये चक्रवर्तियों के पिताओं के नाम हैं।। ४६-४७॥ - विवेचन - पांच भरत पांच ऐरवत और पांच महविदेह ये पन्द्रह कर्म भूमि के क्षेत्र हैं। इनमें तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि महापुरुषों का जन्म होता है। भरत और ऐरवत क्षेत्र में एक-एक विजय हैं। महाविदेह क्षेत्र में बत्तीस-बत्तीस विजय हैं। इस प्रकार पाँच भरत, पाँच ऐरवत और पाँच महाविदेह क्षेत्र में कुल ३४४५=१७० विजय हैं। इनको चक्रवर्ती जीतता. है, इसलिये इनको विजय कहते हैं। एक-एक विजय में छह-छह खण्ड होते हैं। चक्रवर्ती छहों खण्ड का स्वामी होता है। चक्रवर्ती के ७ एकेन्द्रिय रत्न और ७ पञ्चेन्द्रिय रत्न होते हैं। इस प्रकार चौदह रत्न होते हैं। नौ निधियाँ होती हैं। छहों खण्डों को जीतने के लिए सुदर्शन चक्र सर्व प्रथम शस्त्र होता है। उसके बल से छहों खण्डों को जीतता है इसलिये उसे चक्रवर्ती कहते हैं। चक्रवर्ती की महान् ऋद्धि होती है उसकी ऋद्धि का विस्तृत वर्णन भरत चक्रवर्ती के अधिकार में जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के तीसरे वक्षस्कार में दिया गया है। जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए। • जब चक्रवर्ती उत्पन्न होता है तब उसके चौदह रत्न भी. उत्पन्न होते हैं और जब चक्रवर्ती दीक्षा ले लेता है या काल कर जाता है तब वे चौदह रत्न भी विलुप्त हो जाते हैं अर्थात् रत्न रूप में देवाधिष्ठित नहीं रहते हैं। नौ निधियाँ सदा गंगा नदी के मुख पर रहती हैं। जब जो चक्रवर्ती होता है उसके अधीन हो जाती हैं और जब चक्रवर्ती दीक्षा ले लेता है या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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