Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 447
________________ ४३० समवायांग सूत्र मुनिसुव्रतनाथजी के पास दीक्षा ली थी। बहुत वर्षों तक संयम का पालन करके एक महीने का संथारा करके महाशुक्र नामक सातवें देवलोक में उत्पन्न हुए । वहाँ १७ सागरोपम की स्थिति पूर्ण करके महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य भव प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त करेंगे । इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि - कृष्ण वासुदेव के पूर्व भव का जीव गंगदत्त दूसरा है और भगवती वर्णित गंगदत्त दूसरा है। तीर्थङ्कर चरित्र दूसरा भाग के पृष्ठ ३०७ में भगवती वर्णित गंगदत्त को ही कृष्ण का पूर्व भव का जीव बताया है किन्तु वह आगमानुसार मेल नहीं खाता है। क्योंकि वह गंगदत्त तो साधारण केवली होकर महाविदेह क्षेत्र में मोक्ष पधारेंगे। बलदेव और वासुदेवों के पूर्वभव के धर्माचार्यों के नाम एएसिं णवण्हं बलदेव वासुदेवाणं पुव्वभविया णव धम्मायरिया होत्था, तंजहा संभूय सुभद्द सुदंसणे य सेयंस कण्हे गंगदत्ते य। सागर समुद्दणामे, दुमसेणे य णवमए ॥ ६१॥ एए धम्मायरिया कित्तिपुरिसाण वासुदेवाणं । पुव्वभवे एयासिं, जत्थ णियाणाई कासी य॥ ६२॥ कठिन शब्दार्थ - कितिपुरिसाण - कीर्तिवन्त पुरुषों के, धम्मायरिया - धर्माचार्य, णियाणाई - निदान, कासी - किया था। भावार्थ - इन नौ बलदेव वासुदेवों के पूर्वभव के नौ धर्माचार्य थे, उनके नाम इस प्रकार थे - १. संभूत, २. सुभद्र, ३. सुदर्शन, ४. श्रेयांस, ५. कृष्ण, ६. गंगदत्त, ७. सागर, ८. समुद्र, ९. द्रुमसेन। कीर्तिवन्त बलदेव वासुदेवों के पूर्वभव में ये धर्माचार्य हुए थे। अब आगे उन नगरियों के नाम बतलाये जाते हैं जहां पर वासुदेवों ने नियाणा किया था।। ६१-६२॥ . निदानभूमियों के नाम एएसिं णवण्हं वासुदेवाणं पुव्वभवे णव णियाण भूमिओ होत्था, तंजहा - महुरा य कणयवत्थू, सावत्थी पोयणं च रायगिहं । कायंदी कोसंबी, मिहिलपुरी, हत्थिणाउरं च ।। ६३॥ कठिन शब्दार्थ - णियाणभूमिओ - निदानभूमिका-निदान करने के स्थान। भावार्थ - इन नौ वासुदेवों के पूर्वभव में नौ नियाणा करने के स्थान थे, उनके नाम इस प्रकार थे - १. मथुरा, २. कनकवस्तु, ३. श्रावस्ती, ४. पोतनपुर, ५. राजगृह, ६. काकन्दी, ७. कौशाम्बी, ८. मिथिलापुरी और ९. हस्तिनापुर ।। ६३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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