Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 441
________________ ४२४ समवायांग सूत्र भद्दा तहं सुभद्दा य, सुप्पभा य सुदंसणा ।। विजया वेजयंती य, जयंती अपराजिया॥ ५५॥ णवमीया रोहिणी य, बलदेवाण मायरो ॥ भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में नौ बलदेवों की नौ माताएं हुई थी, उनके नाम इस प्रकार हैं - १. भद्रा, २. सुभद्रा, ३. सुप्रभा, ४. सुदर्शना, ५. विजया, ६. वैजयन्ती, ७. जयन्ती, ८. अपराजिता और ९. रोहिणी। ये बलदेवों की माताओं के नाम हैं।। ५५॥ विवेचन - नौ बलदेव और नौ वासुदेव ये दोनों सगे भाई होते हैं अर्थात् एक ही पिता की सन्तान होते हैं किन्तु माताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। अर्थात् नौ बलदेवों की मातायें नौ अलग होती हैं और नौ वासुदेवों की मातायें नौ अलग होती हैं। जैसा कि ऊपर मूल पाठ में और उसके भावार्थ में बतला दिया गया है। ___जंबूहीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए णव दसारमंडला होत्था, तंजहा - उत्तमपुरिसा, मज्झिमपुरिसा, पहाणपुरिसा, ओयंसी, तेयंसी, वच्चंसी, जसंसी, छायंसी, कंता, सोमा, सुभगा, पियदसणा, सुरूवा, सुहसीला, सुहाभिगमा, सव्वजण णयणकंता, ओहबला, अइबला, महाबला, अणिहया, अपराइया, सत्तुमद्दणा, रिउसहस्स माण महणा, साणुक्कोसा, अमच्छरा, अचवला, अचंडा, मियमंजुलपलाव हसिया, गंभीरमहुर पडिपुण्ण सच्चवयणा, अब्भुवगय वच्छला, सरण्णा, लक्खण वंजण गुणोववेया, माणुम्माणपमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंगसुंदरंगा, ससिसोमागार कंत पियदंसणा, अमरिसणा, पयंडदंडप्पभारा, गंभीरदरिसणिज्जा, तालद्धओव्विद्धगरुल केउमहाधणुविकट्टया, महासत्तसायरा, दुद्धरा, धणुद्धरा, धीरपुरिसा, जुद्धकित्ति पुरिसा, विउलकुल समुब्भवा, महारयण विहाडगा, अद्धभरहसामी, सोमा, रायकुलवंसतिलया, अजिया, अजियरहा, हलमुसल कणकपाणी, संखचक्कगयसत्तिणंदगधरा, पवरुज्जलसुक्कंत विमल गोथूभतिरीडधारी, कुंडलउज्जोइयाणणा, पुंडरीयणयणा एगावलीकंठलइयवच्छा, सिरीवच्छसुलंछणा, वरजसा, सव्वोउयसुरभिकुसुमरइयपलंबसोभंत कंतविकसंतविचित्त वरमाल रइयवच्छा, अट्ठसय विभत्तलक्खण-पसत्थसुंदर विरइयंगमंगा, मत्तगयवरिंदललिय विक्कम विलसियगई, सारय णवथणिय-महुरगंभीर कुंच णिग्योस दुंदुभिसरा, कडिसुत्तगणीलपीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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