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समवायांग सूत्र
सुदृढ़ और सुन्दर शरीर, गौर वर्ण, सुन्दर रूप, उत्तम जाति, उत्तम कुल, उत्तम क्षेत्र में जन्म, आरोग्यता, औत्पत्तिकी आदि बुद्धि, अपूर्व श्रुत को ग्रहण करने वाली मेधा - विशिष्ट बुद्धि, इन उत्तम बोलों की प्राप्ति होती है तथा उत्तम मित्र, स्वजन सम्बन्धी, धन, धान्य तथा समृद्धि यानी खजाना आदि वस्तुओं की तथा विविध प्रकार के कामभोगों से उत्पन्न सुखों की प्राप्ति होती है। ये सब बातें सुखविपाक सूत्र में वर्णित जीवों में पाई जाती हैं।
विपाक सूत्र में राग द्वेष के विजेता श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने शुभ और अशुभ कर्मों के अनेक प्रकार के विपाक, जो कि अविच्छिन्न परम्परा से बंधे हुए हैं और संवेग के कारण भूत हैं, वे कहे हैं और इसी तरह के दूसरे भी बहुत से भाव विस्तार पूर्वक कहे गये हैं। ___ विपाक सूत्र की परित्ता - संख्याता वाचना हैं, संख्याता अनुयोगद्वार हैं यावत् संख्याता संग्रहणी गाथाएं हैं। यह विपाक सूत्र अङ्गों की अपेक्षा ग्यारहवां अङ्ग सूत्र है। इसके बीस अध्ययन हैं बीस उद्देशनकाल, बीस समुद्देशनकाल हैं। प्रत्येक पद की अपेक्षा संख्याता लाख पद यानी एक करोड़ ८४ लाख ३२ हजार पद कहे गये हैं। इसमें संख्याता अक्षर, अनन्ता गमा यानी ज्ञान करने के मार्ग, अनन्ता पर्याय यावत् इस तरह से चरणसत्तरि करणसत्तरि की प्ररूपणा से भाव कहे गये हैं। विपाक सूत्र के ये भाव कहे गये हैं।। ११॥
विवेचन - ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों के शुभ और अशुभ परिणामों को विपाक कहते हैं। ऐसे कर्म विपाक का वर्णन जिस सूत्र में हो वह विपाक सूत्र कहलाता है। यह ग्यारहवाँ अङ्ग सूत्र है, इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध का नाम दुःख विपाक है और दूसरे का नाम सुख विपाक है। दुःख का स्वरूप समझ लेने पर सुख का स्वरूप सरलता से समझ में आ सकता है। इसीलिये पहले श्रुत स्कन्ध का नाम दु:ख विपाक है। इसमें दस अध्ययन हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं -
१. मृगापुत्र २. उज्झितकुमार ३. अभग्नसेन चोर सेनापति ४. शकट सेनापति ५. बृहस्पतिकुमार ६. नन्दीवर्द्धन ७. उंबरदत्तकुमार ८. शौर्यदत्तकुमार ९. देवदत्ता रानी १०. अंजुकुमारी।
एक एक अध्ययन में एक-एक कथा दी गई है। इन कथाओं में यह बतलाया गया है कि किन व्यक्तियों ने पूर्व भव में किस किस प्रकार और कैसे कैसे पाप-कर्म उपार्जन किये जिससे आगामी भव में उन्हें किस प्रकार दुःखी होना पड़ा। नरक और तिर्यञ्च के अनेक भवों में दुःख मय कर्म विपाकों को भोगने के पश्चात् मोक्ष प्राप्त करेंगे। पाप कार्य करते समय तो अज्ञानतावश जीव प्रसन्न होता है और वे पापकारी कार्य सुखदायी प्रतीत होते हैं किन्तु उनका
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