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समवायांग सत्र
६. अभिषेक - जन्म के पश्चात् ५६ दिशा कुमारी देवियों का आना, अशुचि निवारण, ६४ इन्द्रों के द्वारा मेरु पर्वत पर ले जाकर अभिषेक करना आदि का कथन ।
७. राज्यलक्ष्मी - जितने वर्ष राज्य पद भोगा यह बताया जाता है। यदि किसी ने पहले माण्डलिंक पद पाकर फिर चक्रवर्ती पद भी पाया हो तथा कोई राज्य पद भोगे बिना कुमार पद में ही दीक्षा ली हो आदि का कथन ।
८. प्रव्रज्या - जिस मिति, नक्षत्र आदि में जिस वन और वृक्ष के नीचे जितनों के साथ दीक्षा ली उन सब का कथन ।
९. तप - दीक्षा लेकर जैसा कठोर तप किया, जितने काल तक किया जो अभिग्रह, प्रतिमाएँ धारण की, जहाँ आर्य अनार्य देश में विचरण किया जैसी शय्या, आसन आदि काम में लिये हों उन सब का कथन ।
१०. केवलज्ञान - जब, ज़हाँ जिस अवस्था में जितने वर्ष छद्मस्थता के बाद केवल ज्ञान हुआ। देवताओं ने केवलज्ञान कल्याणक मनाया आदि का कथन ।
११. तीर्थ प्रवर्तन - साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध तीर्थ की स्थापना । . १२. जितने शिष्य हुए - उनकी संख्या का कथन । १३. जितने गण (गच्छ) हुए - उनकी संख्या का कथन । ' १४. गणधरों की संख्या - और उनके नाम का कथन । १५. साध्वी प्रमुखा - प्रवर्तिनी आर्याओं के नाम और संख्या।
१६-१९. चतुर्विधसंघ का परिमाण - जिस तीर्थङ्कर के शासन में जितने साधुसाध्वियाँ, श्रावक-श्राविका हुए उनकी संख्या तथा उनके प्रमुखों का नाम ।
२०-२२. ज्ञानी संख्या - जिस तीर्थङ्कर के शासन में जितने केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी और अवधिज्ञानी हुए हैं उनकी संख्या। .
२३. समस्त श्रुतज्ञानी - समस्त आगमों के ज्ञाता - उत्कृष्ट श्रुतज्ञानी जितने हुए उनकी संख्या।
२४. वादी - देव, दानव और मनुष्यों की परिषद् में वाद में पराजित नहीं होने वाले, शास्त्रार्थ अर्थात् चर्चा करने में निपुण ऐसे वादी मुनियों की संख्या।
२५. अनुत्तर गति - विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध, इन पांच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले मुनियों की संख्या।
२६. उत्तर वैक्रिय - करने में समर्थ मुनिराजों की संख्या।
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