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समवायांग सूत्र ।
औदारिक शरीर की कितनी बड़ी अवगाहना कही गई है ? हे गौतम! जघन्य अङ्गल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन से कुछ अधिक कही गई है। जिस प्रकार श्री पन्नवणा सूत्र के अवगाहना संस्थान नामक इक्कीसवें पद में औदारिक शरीर का प्रमाण कहा गया वह सारा ज्यों का त्यों यहाँ कह देना चाहिए यावत् मनुष्य के औदारिक की उत्कृष्ट अवगाहना तीन गाऊ (कोस) की कही गई है।
विवेचन - प्रश्न - हे भगवन्! औदारिक शरीर किसे कहते हैं ?
उत्तर - उदार अर्थात् प्रधान अथवा स्थूल पुद्गलों से बना हुआ शरीर औदारिक कहलाता है। तीर्थङ्कर, गणधरों का शरीर प्रधान पुद्गलों से बनता है और सर्वसाधारण का शरीर स्थूल असार पुद्गलों से बना हुआ होता है। रूप की अल्पबहुत्व में इस प्रकार कहा है कि- सबसे अल्प रूप अनुत्तर विमान के देवों का, उससे अधिक रूप आहारक शरीर के पुतले का, उससे अधिक रूप गणधरों का और उससे अधिक रूप तीर्थङ्कर भगवन्तों के शरीर का होता है। अथवा अन्य शरीरों की अपेक्षा अवस्थित रूप से विशाल अर्थात् बड़े परिमाण वाला होने से यह औदारिक शरीर कहा जाता है। वनस्पतिकाय की अपेक्षा औदारिक शरीर की एक सहस्त्र योजन की अवस्थित अवगाहना है। अन्य सभी शरीरों की अवस्थित अवगाहना इससे कम है। वैक्रिय शरीर की उत्तर वैक्रिय की अपेक्षा अनवस्थित अवगाहना लाख योजन की है। परन्तु भव धारणीय वैक्रिय शरीर की अवगाहना तो पाँच सौ धनुष से ज्यादा नहीं है। अन्य शरीर की अपेक्षा अल्प प्रदेश वाला तथा परिमाण में बड़ा होने से यह औदारिक शरीर कहलता है। मांस, रुधिर, अस्थि आदि से बना हुआ शरीर औदारिक कहलाता है। औदारिक शरीर मनुष्य और तिर्यञ्च के होता है।
वैक्रिय शरीर . कइविहे णं भंते! वेउव्विय सरीरे पण्णत्ते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते तंजहाएगिदिय वेउव्वियसरीरे य पंचिंदियवेउव्विय सरीरे य। एवं जाव सणंकुमारे आढत्तं जाव अणुत्तराणं भवधारणिज्जा जाव तेसिं रयणी रयणी परिहायइ ।
कठिन शब्दार्थ - रयणी - रत्नि-एक हाथ, परिहायइ - कम होती जाती है। .. भावार्थ - हे भगवन् ! वैक्रिय शरीर कितने प्रकार का कहा गया है? हे गौतम! दो प्रकार का कहा गया है जैसे कि एकेन्द्रिय का वैक्रिय शरीर और पञ्चेन्द्रिय वैक्रिय शरीर। इस प्रकार यावत् भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और पहले और दूसरे देवलोक के देवों की
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