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समवायांग सूत्र
इसका आशय यह है कि - तीर्थङ्करों की उपस्थिति में जितनी भी दीक्षाएँ होती हैं वे सब तीर्थङ्कर भगवान् की नेश्राय में होती है। गणधर स्वतन्त्र रूप से अपने-अपने शिष्य नहीं बनाते हैं इस अपेक्षा से नव गणधर तो भगवान् महावीर स्वामी की उपस्थिति में ही मोक्ष चले गये थे तथा भगवान् के मोक्ष जाते ही गौतमस्वामी को केवलज्ञान हो गया था। इसलिये इन दस गणधरों के लिए 'णिरवच्चा' (निरपत्य) शब्द का प्रयोग किया है अर्थात् इन दस गणधरों के शिष्य परम्परा रूप सन्तति नहीं थी। सुधर्मा स्वामी अभी तक छद्मस्थ थे इसलिए चतुर्विध संघ ने मिल कर सुधर्मास्वामी को भगवान् महावीर स्वामी के पाट पर स्थापित किया। तीर्थङ्कर के पाट पर उनके केवली शिष्य गणधर स्थापित नहीं किये जाते हैं। क्योंकि वे तो सर्वज्ञ सर्वदर्शी होने के कारण इस प्रकार से फरमाते हैं किं - मैं जैसा जानता और देखता हूँ, वैसा कहता हूँ। ऐसा कहने से तीर्थङ्कर की पाट परम्परा नहीं चलती है इसलिए तीर्थङ्कर के पाट पर उनके छद्मस्थ शिष्य गणधर को स्थापित किया जाता है। वे छद्मस्थ होने के कारण ऐसा फरमाते हैं कि - 'सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खाय' अर्थात् उन सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थङ्कर भगवन्तों ने ऐसा फरमाया है, मैंने उनके मुखारविन्द से सुना है। इस प्रकार का कथन वर्तमान में उपलब्ध ३२ आगमों में जगह-जगह सुधर्मास्वामी ने अपने ज्येष्ठ शिष्य जम्बूस्वामी से कहा है कि - हे आयुष्मन् जम्बू ! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सुना है, वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ।
नोट - टीका में आये हुए कल्पभाष्य और पर्युषणाकल्प आदि शब्दों से कल्प सूत्र की रचना का कथन करना उचित नहीं लगता है। इसकी विस्तृत चर्चा 'त्रीणि छेद सूत्राणि' में देखनी चाहिए। श्री मधुकर जी म. सा. के प्रधान सम्पादकत्व में बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि से इस पर विचारणा की है। दशाश्रुतस्कन्ध की आठवीं दशा पर किया गया उनका विवेचन बहुत ही खोज पूर्ण और पाण्डित्यपूर्ण है। पर्युषणाकल्प और कल्पसूत्र स्वतन्त्र रचना है किन्तु दशा श्रुतस्कन्ध की आठवीं दशा नहीं है।
लेखक का कथन है कि - वर्तमान में उपलब्ध कल्प सूत्र में कल्प (साधु मर्यादा) के विरुद्ध तथा आगम के भी विरुद्ध कई बाते हैं। वे सब कल्पित हैं। अतः आगमवेत्ताओं की मान्यता है कि इसे कल्प सूत्र न कहकर कल्पित सूत्र कहना ज्यादा उपयुक्त है।
शोधार्थी विद्यार्थियों के लिए एवं विशेष जिज्ञासुओं के लिए वह विवेचन पठनीय, मननीय और संग्रहणीय है।
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