Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 424
________________ कुलकरों की भार्याएं मननननननननननननननन नोट - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में इस अवसर्पिणी काल में पन्द्रह कुलकर हुए । यथा १. सुमति २ प्रतिश्रुति ३. सीमंकर ४. सीमंधर ५. खेमंकर ६. खेमंधर ( क्षेमंकर, क्षेमंधर) ७. विमलवाहन ८. चक्षुष्मान ९. यशस्वी १०. अभिचन्द्र ११. चन्द्राभ १२. प्रसेनजित १३. मरुदेव १४. नाभि १५. ऋषभ। दस कुलकर बताये गये हैं- उपरोक्त पन्द्रह में से पांच को छोड़ कर आगे के दस यथा १. खेमंधर २. विमलवाहन ३. चक्षुष्मान ४. यशस्वी ५ अभिचन्द्र ६. चन्द्राभ ७. प्रसेनजित ८. मरुदेव ९. नाभि १०. ऋषभ । ठाणाङ्ग समवायाङ्ग और भगवती सूत्र में सात ही कुलकर बताये गये हैं यथा १. विमलवाहन २. चक्षुष्मान ३. यशस्वान ४. अभिचन्द्र ५. प्रश्रेणि ६. मरुदेव ७. नाभि । प्रश्न- कुलकरों की ऐसी भिन्न भिन्न संख्यायें क्यों बतायी गई है ? उत्तर - प्रश्न ठीक है, उसका समाधान इस प्रकार है - अवसर्पिणी काल के तीसरे आरे अन्त में जब दस प्रकार के युगलिक वृक्षों में से चार कम हो गये और वृक्षों के फल देने . की शक्ति भी कम होने लग गई तब व्यवस्था की दृष्टि से कुलकरों की नियुक्ति की गई । कुलकरों के समय तीन प्रकार की दण्डनीति थी यथा 'हकार' 'मकार' और 'धिक्कार' । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में समकालीन तथा स्वल्प 'हकार' दण्डनीति वालों को भी कुलकर मान लेने से १५ कुलकर बतलाये गये हैं। पहले के पांच कुलकरों को स्वल्प दण्डनीति होने से कुलकर न माना जाय तो दस कुलकर रह जाते हैं। उन दस में से भी खेमंधर और विमलवाहन तथा चन्द्राभ और प्रसेनजित समकालीन होने से दोनों में से मुख्य विमलवाहन और प्रसेनजित इन एक एक को ही कुलकर मानने से तथा नाभि और ऋषभ के समकालीन होने से तथा ऋषभ के राजा हो जाने से नाभि को कुलकर में नहीं गिनने से ठाणाङ्ग सूत्र, समवायाङ्ग सूत्र, भगवती सूत्र में सात कुलकर ही बताये हैं। हीरवृत्ति (आगमोदय समिति से प्रकाशित जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र पत्र १३३ के टिप्पण) विशेषणवत्ती का प्रमाण देकर इसका समाधान इस प्रकार दिया है. - . ४०७ . 'कुलकरा हि द्विविधा भवन्ति, कुलकरकृत्येषु नियुक्ताः स्वतन्त्र प्रवृत्ताश्च तत्र विमलवाहना दयो नियुक्तास्ते स्थानांगादौ भणिताः इह ( जम्बूद्वीपप्रज्ञप्त्यां) कुलकर कृत्यं कुर्वतः, कुलकरा भवन्त्येव इति अभिप्रायेण उभये अपि उपात्ताः । ' अर्थ- कुलकर दो प्रकार के होते हैं - कुलकरों द्वारा नियुक्त किये हुए तथा स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा पूर्वक कुलकरों का कार्य करने वाले । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में दोनों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org

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