Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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४१२
समवायांग सूत्र
एयाओ सीयाओ, सव्वेसिं चेव जिणवरिंदाणं । सव्वजगवच्छलाणं, सव्वोउगसुभाए छायाए ॥१८॥ पुव्विं ओक्खित्ता, माणुस्सेहिं साहट्ट रोमकूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं, असुरिंदसुरिंदणागिंदा ॥ १९॥ चलचवलकुंडलधरा, सच्छंद विउव्वियाभरणधारी । सुरअसुरवंदियाणं, वहति सीयं जिणंदाणं ॥ २०॥ पुरओ वहति देवा, णागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि ।. . . पच्चत्थिमेण असुरा, गरुला पुण उत्तरे पासे ॥२१॥ उसभो य विणीयाए, बारवईए अरिट्ठवरणेमी । अवसेसा तित्थयरा, णिक्खंता जम्मभूमिसु ॥ २२॥ सव्वे वि एगदूसेण, णिग्गया जिणवरा चउव्वीसं । ण य णाम अण्णलिंगे, ण य गिहिलिंगे कुलिंगे य।। २३॥ इक्को भगवं वीरो, पासो मल्ली य तिहिं तिहिं सएहिं । भगवं वि वासुपुज्जो, छहिं पुरिससएहिं णिक्खंतो ।।२४॥ उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं च खत्तियाणं च । चउहिंसहस्सेहिं उसभो, सेसा उसहस्स परिवारा.॥२५॥ सुमइत्थ णिच्चभत्तेण, णिग्गओ वासुपुज्ज चउत्थेणं ।
पासो मल्ली य अट्टमेण, सेसा उ छटेणं ॥ २६॥ कठिन शब्दार्थ - सीयाओ - शिविका-पालकी, सव्वजगवच्छलयाणं - सर्व जगत्, वत्सल - संपूर्ण जगत के हितकारी, सव्वोउगसुभाए - सर्वऋतुक शुभया-सब ऋतुओं में सुख देने वाली, साहट्टरोमकूवेहिं - जिनके रोम रोम हर्षित हो रहे हैं, ओक्खिता - उठाते हैं, चलचवल-कुंडलधरा - चञ्चल और चपल कुण्डलों को धारण करने वाले, सच्छंदविउव्वियाभरणधारी - स्वेच्छापूर्वक वैक्रिय किये हुए आभूषणों को धारण करने वाले, एगदूसेण - एक दूष्य-देव दूष्य वस्त्र के साथ, णिच्चभत्तेण - नित्य भक्त से।
भावार्थ - इन चौबीस तीर्थङ्करों के चौबीस पालकियाँ थीं, उनके नाम इस प्रकार थे - १. सुदर्शना, २. सुप्रभा, ३. सिद्धार्था, ४. सुप्रसिद्धा, ५. विजया, ६. वैजयंती, ७. जयन्ती, ८. अपराजिता, ९. अरुणप्रभा, १०. चन्द्रप्रभा, ११. सूर्यप्रभा, १२. अग्निप्रभा, १३. विमला,
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