Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 422
________________ ४०५ कुलकर पद अतीत उत्सर्पिणी के कुलकर जंबूहीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए उस्सप्पिणीए सत्त कुलगरा होत्था तंजहा मित्तदामे सुदामे य, सुपासे य सयंपभे । विमलघोसे सुघोसे य, महाघोसे य सत्तमे ॥ १॥ कठिन शब्दार्थ - तीयाए उस्सप्पिणीए - अतीत उत्सर्पिणी काल में, कुलगरा- कुलकर। भावार्थ - इस जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर हुए थे उनके नाम इस प्रकार हैं - १. मित्रदाम, २. सुदाम, ३. सुपार्श्व, ४. स्वयंप्रभ, ५. विमलघोष, ६. सुघोष, और ७. महाघोष। अतीत अवसर्पिणी के कलकर जंबूहीवे णं दीवे भारहे वासे तीयाए ओसप्पिणीए दस कुलगरा होत्था, तंजहा सयंजले सयाऊ य, अजियसेणे अणंतसेणे य। कज्जसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे ॥ २॥ - दढरहे दसरहे सयरहे । भावार्थ - इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत अवसर्पिणी काल में दस कुलकर हुए थे। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. स्वयञ्जल (शतंजल) २. शतायु, ३. अजितसेन, ४. अनन्तसेन, ५. कार्यसेन, ६. भीमसेन, ७. महाभीमसेन, ८. दृढरथ, ९. दशरथ और १०. शतरथ। इस अवसर्पिणी के कुलकर जंबूहीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए सत्त कुलगरा होत्था, तंजहा - पढमेत्थ विमल वाहणे, चक्खुमं जसमं चउत्थमभिचंदे । ... तत्तो य पसेणईए, मरुदेवे चेव णाभी य॥ ३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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