Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 419
________________ ४०२ . समवायांग सूत्र कठिन शब्दार्थ - तिवेया - तीनों वेद, बि - बेइन्द्रिय, ति - तेइन्द्रिय। भावार्थ - हे भगवन्! वेद कितने प्रकार के कहे गये हैं? हे गौतम! वेद तीन प्रकार के कहे गये हैं जैसे कि - स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद । हे भगवन्! क्या नैरयिक स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी या नपुसंकवेदी कहे गये हैं ? हे गौतम! नैरयिक जीव स्त्रीवेदी नहीं हैं, पुरुषवेदी नहीं हैं किन्तु नपुंसकवेदी कहे गये हैं। हे भगवन् ! क्या असुरकुमार देवता स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी कहे गये हैं? हे गौतम! असुरकुमार देवता स्त्रीवेदी हैं, पुरुषवेदी हैं किन्तु नपुंसकवेदी नहीं हैं। इसी तरह स्तनितकुमारों तक कह देना चाहिए। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, सम्मूर्छिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और सम्मूर्छिम मनुष्य, ये सब नपुसंकवेदी है। गर्भज मनुष्य और गर्भज तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, तीनों वेदी होते हैं। जिस प्रकार असुरकुमार देव कहे गये हैं उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव भी कह देने चाहिए अर्थात् ये भी स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी होते हैं किन्तु नपुंसकवेदी नहीं होते हैं। विवेचन - वेद की व्याख्या और उसके भेद - मैथुन सेवन करने की अभिलाषा को वेद (भाव वेद) कहते हैं। यह नोकषाय मोहनीय कर्म के उदय से होता है। स्त्री पुरुष आदि के बाह्य चिह्न द्रव्यवेद हैं। ये नाम कर्म के उदय से प्रकट होते हैं। वेद के तीन भेद - १. स्त्री वेद २. पुरुष वेद ३. नपुंसक वेद। स्त्री वेद - जैसे पित्त के वश से मधुर पदार्थ की रुचि होती है। उसी प्रकार जिस कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ रमण करने की इच्छा होती है। उसे स्त्री वेद कहते हैं। पुरुष वेद - जैसे कफ के वश से खट्टे पदार्थ की रुचि होती है वैसे ही जिस कर्म के उदय से पुरुष को स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा होती है उसे पुरुष वेद कहते हैं। नपुंसक वेद - जैसे पित्त और कफ के वश से मज्जिका के प्रति रुचि होती है उसी तरह जिस कर्म के उदय से नपुंसक को स्त्री और पुरुष दोनों के साथ रमण करने की अभिलाषा होती है। उसे नपुंसक वेद कहते हैं। यहाँ पर आये हुए 'मज्जिका' शब्द का अर्थ 'अभिधान राजेन्द्र कोष' में (मज्जिकारसाला) ऐसा किया है तथा पाइअ सद्द महण्णवो कोष में-केशर कस्तूरी आदि सुगन्धिव द्रव्यों से युक्त मिश्री मिला हुआ दूध ऐसा किया है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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