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समवायांग सूत्र
के वर्णन में पूरे शरीर के विष्कम बाहल्य जितना संख्यात योजन का दंड निकलना बताया है। उसी दंड के द्वारा आहारक वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करके आहारक शरीर का निमार्ण करता है एवं कार्य समाप्ति पर पुनः आत्म प्रदेशों को शरीर में प्रविष्ट कर देता है। अतः शरीर से निकलना एवं प्रवेश करना समझा जाता है। श्वेताम्बर आगमों से तो यही स्पष्ट होता है।
। तैजस और कार्मण शरीर तेया सरीरे णं भंते! कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते तंजहा - एगिंदिय तेयसरीरे बि ति चउ पंचिंदिय तेयासरीरे एवं जाव गेवेज्जस्स णं भंते! देवस्स णं मारणंतिय समुग्घाएणं समोहयस्स समाणस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभबाहल्लेणं आयामेणं जहण्णेणं अहे जाव विज्जाहरसेढीओ उक्कोसेणं जाव अहोलोइयग्गामाओ, उद्रं जावं सयाई विमाणाई तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं, एवं जाव अणुत्तरोववाइया। एवं कम्मयसरीरं भाणियव्वं ।
. कठिन शब्दार्थ - तेया सरीरे - तैजस शरीर, सरीरप्पमाणमेत्ता - स्वशरीर प्रमाण,.. विज्जाहर सेढीओ - विद्याधरों की श्रेणी तक, अहोलोइयग्गामाओ - अधोलौकिक ग्राम तक। ___ भावार्थ - हे भगवन्! तैजस् शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? हे गौतम! पांच प्रकार का कहा गया है जैसे कि एकेन्द्रिय तैजस् शरीर, बेइन्द्रिय तैजस् शरीर, तेइन्द्रिय तैजस् शरीर, चउरिन्द्रिय तैजस् शरीर, पञ्चेन्द्रिय तैजस् शरीर । अहो भगवन्! मारणांतिक समुद्घात करने वाले तैजस् शरीर की यावत् ग्रैवेयक तक कितनी अवगाहना कही गई है ? हे गौतम ! चौड़ाई में तैजस् शरीर की अवगाहना स्वशरीर प्रमाण है, लम्बाई में जघन्य अङ्गल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट ऊपर और नीचे लोकान्त तक । यावत् ग्रैवेयक तक सारा अधिकार कह देना चाहिए। ग्रैवेयक और अनुत्तरविमान के देवता जघन्य नीचे विद्याधरों की श्रेणी तक और उत्कृष्ट अधोलौकिक ग्राम तक, ऊपर अपने अपने विमान तक, तिर्छा मनुष्य क्षेत्र तक मरणसमय में तैजस् शरीर का विस्तार होता है। कार्मण शरीर की अवगाहना और संस्थान तैजस् शरीर के समान ही होता है।
विवेचन - तैजस् पुद्गलों से निर्मित शरीर जो कि तेजोलब्धि (तैजस् समुद्घात) का हेतु एवं शरीर की आभा, क्रांति का कारण एवं उष्मा (जठराग्नि) का उदासीन कारण होता है, उसे तैजस् शरीर कहते हैं। (आहार को पचाने आदि का कार्य औदारिक शरीर एवं पर्याप्तियों का समझा जाता है, तैजस् शरीर का नहीं)।
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