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समवायांग सूत्र
प्रश्न - हे भगवन्! आहारक शरीर का पुतला बनाने का क्या प्रयोजन है?
उत्तर - जीवाभिगम सूत्र की टीका में तथा पन्नवणा सूत्र के बीसवें पद की टीका में इस प्रकार का प्रयोजन बताया है।
पाणिदया-रिद्धिदरिसण, छम्मत्थोवग्गहण हेऊ वा ।
संसयवुच्छेयत्थं, गमणं जिणपायमूलम्मि ॥ अर्थ - प्राणियों की दया के लिये तथा तीर्थङ्कर भगवान् की ऋद्धि देखने के लिये एवं संशय निवारण के लिये तथा नया ज्ञान सीखने के लिये इत्यादि प्रयोजन उपस्थित होने पर चौदह पूर्वधारी मुनिराज आहारक लब्धि के बल से अपने शरीर में से पुतला निकालते हैं। यह लब्धि सभी चौदह पूर्वधारियों के नहीं होती है किन्हीं-किन्हीं को होती है। जिसे आहारक लब्धि होती है उसके चौदह पूर्वो का ज्ञान नियमा (अवश्य) होता है। आहारक लब्धिधारी मुनिराज के शरीर का जैसा आकार प्रकार संस्थान होता है वैसा ही आकार प्रकार संस्थान उस पुतले का भी होता है। किन्तु वह ऊंचाई में एक हाथ प्रमाण या एक हाथ से कुछ कम होता है। • प्रश्न - प्राणीदया के प्रयोजन का क्या अभिप्राय है ? - उत्तर - जब लोक में हिंसा झूठ आदि पापाचार एवं भ्रष्टाचार आदि अधिक बढ़ जाता है, तब चौदह पूर्वधारी मुनिराज अपने शरीर में से एक हाथ प्रमाण पुतला निकाल कर ऊपर आकाश में खड़ा कर देते हैं फिर वह पुतला यह घोषणा करता है कि जीवों की हिंसा बन्द करो। झूठ, चोरी, व्यभिचार, बलात्कार, भ्रष्टाचार बन्द करो । ऐसा पापाचार करने वाले का जीवन दुःखी बन जाता है अतः सुख चाहने वाले प्राणियों को उपरोक्त पापाचार तुरन्त बन्द कर देना चाहिए । ऐसी घोषणा को जनता दैवी घोषणा समझ कर पापाचार को बन्द कर देती हैं। "प्राणीदया" का यह अर्थ पूर्वाचार्यों की धारणा के अनुसार है।
प्रश्न - उपरोक्त अर्थ पर से सहज ही यह प्रश्न उत्पन्न हो जाता है कि - अभी पापाचार, भ्रष्टाचार खूब बढ़ा हुआ है यदि यह कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि - अभी पापाचार और भ्रष्टाचार अपनी सीमा को भी उल्लंघन कर रहा है फिर ऐसा पुतला क्यों नहीं निकाला जाता है?
• उत्तर - यह पहले बताया जा चुका है कि - यह आहारक लब्धि चौदह पूर्वधारी मुनिराज को ही होती है। अभी चौदह पूर्वधारी कोई मुनिराज नहीं है। जैसा कि कहा है -
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