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आहार आदि विषयक वर्णन
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उदय आने पर या उदीरणा करण के द्वारा प्राप्त होने पर भोगी जाती है उसे औपक्रमिकी वेदना कहते हैं। इन दोनों ही वेदनाओं को पञ्चेन्द्रिय सन्नी तिर्यञ्च और मनुष्य भोगते हैं। किन्तु देव, नैरयिक और एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तक के जीव केवल औपक्रमिकी वेदना को ही भोगते हैं।
बुद्धिपूर्वक स्वेच्छा से भोगी जाने वाली वेदना को निदा वेदना कहते हैं और अबुद्धिपूर्वक या अनिच्छा से भोगी जाने वाली वेदना को अनिदा वेदना कहते हैं। संज्ञी जीव इन दोनों ही प्रकार की वेदनाओं को भोगते हैं। किन्तु असंज्ञी जीव केवल अनिदा वेदना को ही भोगते हैं। इस विषय में प्रज्ञापना सूत्र के पैंतीसवें वेदना पद का अध्ययन करना चाहिए।
लेश्या का वर्णन - कइ णं भंते! लेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ तंजहा- .. किण्हा, णीला, काऊ, तेऊ, पम्हा, सुक्का। एवं लेस्सापदं भाणियव्वं।
भावार्थ - हे भगवन्! कितनी लेश्याएं कही गई हैं ? हे गौतम! छह लेश्याएं कही गई हैं जैसे कि - कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल। इस प्रकार श्री पन्नवणा सूत्र का सतरहवाँ लेश्या पद सारा कह देना चाहिए।
विवेचन - विशेष जिज्ञासुओं को पन्नवणा सूत्र के सतरहवें पद का अवलोकन करना चाहिए।
. .. आहार आदि विषयक वर्णन .
अणंतरा य आहारे, आहाराभोगणा इय।
पोग्गला व जाणंति, अज्झवसाणे य सम्मत्ते ॥१॥ णेरइया णं भंते! अणंतराहारा तओ णिव्वत्तणया तओ परियाइयणया तओ परिणामणया तओ परियारणया तओ पच्छा विकुव्वणया ? हंता गोयमा! एवं आहारपदं भाणियव्वं ॥ ___ कठिन शब्दार्थ - अणंतरा - अन्तर रहित, अज्झवसाणे - अध्यवसाय, सम्मत्ते - सम्यक्त्व, अणंतराहारा - अनन्तराहारक, णिव्वत्तणया - निर्वर्तना, परियाइयणया - पर्यादानता-पुद्गलों को ग्रहण करना, परियारणया - परिचारणा, विकुव्वणया - विकुर्वणा।
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