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समवायांग सूत्र
च्यवन नहीं होता क्योंकि मोक्ष में गये हुए जीव के कर्मों का सर्वथा क्षय हो जाता है इसलिए वह संसार में फिर जन्म नहीं लेता है। वह मोक्ष में शाश्वत सिद्ध हो जाता है।
अहो भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होने की अपेक्षा से कितने काल का विरह कहा गया है? हे गौतम! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट २४ मुहूर्त का कहा गया है। इसी प्रकार श्री पन्नवणा सूत्र का उपपात दण्डक कह देना चाहिए और इसी प्रकार उद्वर्त्तना दण्डक भी कह देना चाहिए। _ विवेचन - जितने समय तक विवक्षित गति में किसी भी जीव का जन्म न हो उतने समय को विरह काल या अन्तर काल कहते हैं। जैसे कि यदि नरक में कोई जीव उत्पन्न न हो तो कम से कम एक समय तक उत्पन्न नहीं होगा। यह जघन्य विरह काल है। अधिक से अधिक बारह मुहूर्त तक नरक में (सातों नरकों में) कोई जीव उत्पन्न नहीं होगा यह उत्कृष्ट विरह काल है। अर्थात् बारह मुहूर्त के बाद कोई न कोई जीव नरक में अवश्य उत्पन्न होता ही है यह विरह काल सामान्य कथन है। विशेष कथन की अपेक्षा आगम में सातों ही नरकों का विरह काल भिन्न भिन्न बताया गया है। जैसा कि टीका में उद्धृत इस गाथा से स्पष्ट है
चउवीसई मुहत्ता, सत्त अहोरत्त तह य पण्णरसा ।
मासो य दो य चउरो, छम्मासा विरहकालोत्ति ॥ १ ॥ अर्थात् उत्कृष्ट विरहकाल पहिली पृथ्वी में चौबीस मुहूर्त, दूसरी में सात अहोरात्र, तीसरी में पन्द्रह अहोरात्र, चौथी में एक मास, पांचवीं में दो मास, छठी में चार मास और सातवीं पृथ्वी में छह मास का होता है। ____नोट - चौबीस ही दण्डकों का उपपात विरह और उद्वर्तना विरह पन्नवणा सूत्र के छठे पद में कहा गया है। विशेष जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए।
आकर्ष का वर्णन इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरड्या केवइयं कालं विरहिया उववाएणं ? एवं उववाय दंडओ भाणियव्वो, उव्वट्टणादंडओ य। रइया णं भंते! जाइणाम णिहत्ताउयं कइ आगरिसेहिं पकरंति ? गोयमा! सिय एक्क, सिय बि ति चउ पंच छ सत्त अटेहिं, णो चेव णं णवहि, एवं सेसाण वि आउयाणि जाव वेमाणियत्ति।
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