Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 414
________________ संहनन पद ३९७ भावार्थ - अहो भगवन् ! नैरयिक जीव कितने आकर्षकों से जाति नाम निधत्तायु का बन्ध करते हैं? ... हे गौतम! कदाचित् एक आकर्षक से कदाचित् दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ आकर्षकों से आयु बन्ध करते हैं किन्तु आठ से अधिक नौ आदि आकर्षक कभी नहीं करते हैं। इसी प्रकार शेष सभी जीव याक्त् वैमानिक तक २४ ही दण्डक के जीव आयुबन्ध करते हैं। विवेचन - सामान्यतया आकर्ष का अर्थ है, कर्म पुद्गलों को अपनी तरफ खींचना किन्तु यहाँ पर जीव के आगामी भव की आयु के बन्धने के अवसरों को आकर्ष काल कहा है। जैसे गाय जब वह निर्भय होकर पानी पीती है, तो एक ही वक्त में (एक ही चूंट में एक ही आस्वादन अथवा एक ही सबड़का) पूरा धाप कर पानी पी लेती है किन्तु कोई कोई गाय एक बूंट पीने के बाद भय से इधर उधर देखती है। फिर दूसरा चूंट पीती है। इसी तरह जीव जब परभव के आयुष्य का बन्ध करता है तब यदि तीव्र अध्यवसाय हो तो एक ही बार में आयु कर्म के दलिकों को ग्रहण कर लेता है। यदि अध्यवसाय मन्द हों तो दो आकर्षों से, मन्दतर हो तो तीन से और मन्दतम अध्यवसाय हो तो चार, पांच, छह, सात या आठ आकर्षों से आयु का बन्ध करता है। इस से अधिक नौ, दस आकर्ष नहीं होते हैं। संहनन पद कविहे णं भंते! संघयणे पण्णत्ते? गोयमा! छविहे संघयणे पण्णत्ते तंजहा - वइरोसभ णाराय संघयणे, रिसभ णाराय संघयणे, णाराय संघयणे, अद्धणाराय संघयणे, कीलिया संघयणे, छेवट्ट संघयणे। रइया णं भंते! किं संघयणी पण्णत्ता? गोयमा! छहं संघयणाणं असंघयणी, णेव अद्वि णेव छिरा व णहारू, जे पोग्गला अणिट्ठा, अकंता, अप्पिया, अणाएज्जा, असुभा, अमणुण्णा, अमणामा, अमणाभिरामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति। असुरकुमारा णं भंते! किं संघयणा पण्णत्ता ? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी, णेव अट्ठि, णेव छिरा, णेव ण्हारू, जे पोग्गला इट्ठा, कंता, पिया (आएज्जा), मणुण्णा, सुभा, मणामा, मणाभिरामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति। एवं जाव थणियकुमाराणं। पुढवीकाइया णं भंते! किं संघयणी पण्णत्ता? गोयमा! छेवट्ट संघयणी पण्णत्ता। एवं जाव सम्मुच्छिम पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियत्ति। गब्भवक्कंतिया छव्विह संघयणी। सम्मुच्छिम मणुस्सा छेवट्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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