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समवायांग सूत्र ।
भावार्थ - १. अन्तर रहित आहार, २. आभोग आहार, ३. अनाभोग आहार, ४. अध्यवसाय और ५. सम्यक्त्व, ये पांच द्वार हैं। नैरयिक जिन पुद्गलों का आहार लेते हैं, उन पुद्गलों को वे नहीं जानते हैं।। १॥
हे भगवन्! क्या नैरयिक जीव अनन्तराहारक हैं अर्थात् उत्पत्ति क्षेत्र में प्राप्त होते ही पहले आहार लेते हैं ? इसके बाद निर्वर्तना यानी शरीर की रचना करते हैं? इसके बाद अङ्ग प्रत्यङ्ग से पुद्गलों को खींचते हैं? इसके बाद परिणमाते हैं? इसके बाद परिचारणा यानी । शब्दादि विषयों का उपभोग करते हैं? इसके बाद विकुर्वणा यानी नाना रूप बनाते हैं? हाँ गौतम! नैरयिक जीव इसी तरह करते हैं। इस तरह श्री पन्नवणा सूत्र का चौंतीसवां पद.कह देना चाहिए।
विवेचन - यहाँ पर आहार, अनन्तराहारक इत्यादि बोलों की पृच्छा की है। इन सब बोलों को जानने की सूचना सूत्रकार ने गाथा द्वारा की है। अत: विशेष जिज्ञासुओं को पन्नवणा सूत्र का चौतीसवाँ पद अवलोकन करना चाहिए।
__ आयुष्य बन्ध कइविहे णं भंते! आउयबंधे पण्णत्ते? गोयमा! छव्विहे आउयबंधे पण्णत्ते तंजहा - जाइणाम णिहत्ताउए गइणाम णिहत्ताउए ठिइणाम णिहत्ताउए पएसणाम णिहत्ताउए अणुभागणाम णिहत्ताउए ओगाहणाणाम णिहत्ताउए । णेरइयाणं भंते! कइविहे
आउयबंधे पण्णत्ते? गोयमा! छव्विहे पण्णत्ते तंजहा - जाइणाम णिहत्ताउए गइणाम णिहत्ताउए ठिइणाम णिहत्ताउए पएसणाम णिहत्ताउए अणुभागणाम णिहत्ताउए ओगाहणाणाम णिहत्ताउए, एवं जाव वेमाणियाणं ॥
कठिन शब्दार्थ - आउयबंधे - आयुष्य बन्ध, णिहत्तायु - निधत्तायु।।
भावार्थ - अहो भगवन्! आयुष्य बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? हे गौतम ! आयुष्य बन्ध छह प्रकार का कहा गया है जैसे कि - जाति नाम निधत्तायु - जाति नामकर्म के साथ बंधा हुआ आयुष्य, गतिनामनिधत्तायु - गति नामकर्म के साथ बंधा हुआ आयुष्य, स्थितिनाम निधत्तायु - स्थिति नाम कर्म के साथ बंधा हुआ आयुष्य, प्रदेश नाम निधत्तायु - प्रदेश नाम कर्म के साथ बंधा हुआ आयुष्य, अनुभाग नाम निधत्तायु - अनुभाग नाम कर्म के साथ बंधा हुआ आयुष्य, अवगाहना नाम निधत्तायु - अवगाहना नाम कर्म के साथ बंधा हुआ आयुष्य।
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