________________
३८६
समवायांग सूत्र
भगवन् ! यदि कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है या असंख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के होता है ? हे गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के नहीं होता । हे भगवन्! यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है तो क्या पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के होता है या अपर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के होता है ? हे गौतम! पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है किन्तु अपर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के नहीं होता। हे भगवन्! यदि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है तो क्या समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है? या मिथ्यादृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के होता है? या सममिथ्यादृष्टि यानी मिश्रदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के होता है ? हे गौतम! समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज़ . गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है किन्तु मिथ्यादृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के नहीं होता है और सममिथ्यादृष्टि यानी मिश्रदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर नहीं होता है। हे भगवन् ! यदि समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है तो क्या संयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है? या असंयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है? अथवा संयतासंयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है? हे गौतम! संयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है किन्तु असंयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर नहीं होता है। संयतासंयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर नहीं होता है। अहो भगवन्! यदि संयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमि गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है तो क्या प्रमत्त संयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येष वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है? अथवा अप्रमत्त संयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है ? हे गौतम! प्रमत्त संयत समदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क कर्मभूम्जि गर्भज मनुष्य के आहारक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org