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आहारक शरीर
३८५ MARAHMANANORAMAMANANAATAKAMANARTHATANTRAHMARATHORITAMARHARITAMINARIANIMANASAMANARTimes आहारय सरीरे? गोयमा! पमत्त संजय सम्मदिट्टि पज्जत्तय संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय मणुस्स आहारय सरीरे, णो अपमत्त संजय सम्मदिट्ठि पज्जत्तय संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय मणुस्स आहारय सरीरे । जइ पमत्त संजय सम्मदिट्ठि पज्जत्तय संखेज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय मणुस्स आहारय सरीरे, किं इड्डिपत्त पमत्त संजय सम्मदिट्टि पज्जत्तय संखेज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय मणुस्स आहारय सरीरे, अणिड्विपत्तपमत्तसंजय सम्मदिट्टि पज्जत्तय संखेज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय मणुस्स आहारय सरीरे ? गोयमा! इड्डिपत्त पमत्त संजय सम्मदिट्टि पज्जत्तय संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय मणुस्स आहारय सरीरे, णो अणिड्डिपत्त पमत्त संजय सम्मदिट्ठि पज्जत्त संखेज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय मणुस्स आहारय सरीरे। वयणा वि भाणियव्वा, आहारयसरीरे समचउरंस संठाणसंठिए। आहारयसरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं देसूणा रयणी, उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी। - कठिन शब्दार्थ - संखेजवासाउय - संख्येय वर्षायुष्क-संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले, अपजत्तय - अपर्याप्तक, सम्मामिच्छदिट्टी - सममिथ्यादृष्टि यानी मिश्रदृष्टि, इड्डिपत्त पमत्त संजय - ऋद्धि प्राप्त प्रमत्त संयत्त, अणिड्डिपत्त पमत्त संजय - अनृद्धिप्राप्त प्रमत्त संयत, समचउरंस संठाणसंठिए - समचतुरस्र संस्थान संस्थित, देसूणा - देश ऊना-कुछ कम, पडिपुण्णा - प्रतिपूर्ण।
भावार्थ - हे भगवन्! आहारक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? हे गौतमं! एक प्रकार का कहा गया है। हे भगवन्! यदि आहारक शरीर एक प्रकार का कहा गया है तो क्या आहारक शरीर मनुष्य के होता है या अमनुष्य के होता है ? हे गौतम! मनुष्य के आहारक़ शरीर होता है, अमनुष्य के नहीं होता। हे भगवन्! यदि मनुष्य के आहारक शरीर होता है तो क्या गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है या सम्मूर्छिम मनुष्य के होता है ? हे गौतम ! गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है किन्तु सम्मूर्छिम मनुष्य के नहीं होता । हे भगवन्! यदि गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है तो क्या कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है या अकर्मभूमि के गर्भज मनुष्य के होता है? हे गौतम! कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर होता है किन्तु अकर्मभूमि के गर्भज मनुष्य के नहीं होता । हे
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