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ज्योतिषी देवों का वर्णन
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विजय की अपेक्षा अधोलोक में, जम्बूद्वीप के द्वाराधिपति विजय देव की राजधानी दूसरे जम्बूद्वीप में है, इस अपेक्षा तिर्छा लोक में तथा मेरुपर्वत के पण्डक वन आदि में व्यन्तर देवों के आवास होने से ऊर्ध्व लोक में भी व्यन्तर देवों के आवास हैं। इस प्रकार व्यन्तर देवों का आवास तीनों लोक में है तथापि मुख्य आवास तो तिरछा लोक में ही है। जैसा कि भावार्थ में बता दिया गया है।
ज्योतिषी देवों का वर्णन केवइया णं भंते! जोइसियाणं विमाणावासा पण्णत्ता? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ सत्तणउयाई जोयणसयाई उर्ल्ड उप्पइत्ता एत्थ णं दसुत्तर जोयणसयबाहल्ले तिरियं जोइसविसए जोइसियाणं देवाणं असंखेजा जोइसिय,विमाणावासा पण्णत्ता। ते णं जोइसिय विमाणावासा अब्भुग्गयमूसियपहसिया विविहमणि रयणभत्तिचित्ता बाउद्धय विजय वेजयंती पडाग छत्ताइछत्त कलिया तुंगा गगणतल मणुलिहंतसिहरा जालंतर रयणपंजरुम्मिलियव्व मणि कणगथूभियागा वियसियसयपत्त पुंडरीय तिलयरयणद्धचंदचित्ता अंतो बाहिं च सण्हा तवणिजवालुआ पत्थडा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया, दरिसणिजा, अभिरुवा, पडिरूवा॥ ) . कठिन शब्दार्थ - बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ - बहुत समरमणीय भूमिभाग से, उप्पइत्ता- ऊपर जाने पर, जोइसविसए - ज्योतिषियों का विषय, अब्भुग्गयमूसियपहसियाचारों दिशाओं में फैली हुई कांति से उज्ज्वल, विविह मणिरयणभत्तिचित्ता - अनेक प्रकार की मणियों एवं रत्नों से चित्रित, वाउद्धय विजय वेजयंती पडाग छत्ताइछत्त कलिया - वायु से प्रेरित विजय वैजयंती पताकाओं से तथा छत्रातिछत्रों से सुशोभित, तुंगा - तुंग-बहुत ऊंचे, गगणतलमणुलिहंत सिहरा - उनके शिखर आकाश तल को स्पर्श करने वाले, वियसिय सयपत्त पुंडरीय तिलय रयणद्धचंदचित्ता - विकसित पुण्डरीक कमल के समान रत्नों के तिलक और अर्द्ध चन्द्रादि छापों से चित्रित, तवणिज वालुआ पत्थडा - सोने की बालुका के प्रतिट, सस्सिरीयरूवा - सश्रीक रूप-शोभन आकार वाले। ..
- भावार्थ - हे भगवन्! ज्योतिषियों के कितने विमानावास कहे गये हैं ? हे गौतम! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुत समरमणीय भूमि भाग से अर्थात् मेरु पर्वत के पास समान भूमिभाग से
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