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वैमानिक देवों का वर्णन
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चौड़े होते हैं। असंख्यात विस्तृत विमान तो असंख्यात योजन के लम्बे चौड़े होते हैं। यावत् नव ग्रैवेयक तक ऐसा समझ लेना चाहिए । विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ये चार विमान तो असंख्यात विस्तृत हैं। सर्वार्थ सिद्ध विमान संख्येय विस्तृत हैं अर्थात् एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा है।
प्रश्न - हे भगवन्! वैमानिक देवों के विमान कितने वर्ण वाले हैं?
उत्तर - हे गौतम! सौधर्म और ईशान देवलोकों के विमान कृष्ण, नील, लाल, पीला और सफेद पांचों वर्ण के हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र अर्थात् तीसरे चौथे देवलोक के विमान काले को छोड़ कर शेष चार वर्ण वाले हैं। ब्रह्मलोक और लांतक अर्थात् पांचवें और छठे देवलोक के विमान काले और नीले को छोड़ कर शेष तीन वर्ण वाले हैं। महाशुक्र और सहस्रार अर्थात् सातवें और आठवें देवलोक के विमान पीले और सफेद दो वर्ण वाले हैं। नौवें से लेकर नव ग्रैवेयक तक सफेद वर्ण वाले हैं तथा पांच अनुत्तर के विमान परम शुक्ल वर्ण वाले हैं। ये सब विमान रत्नों के बने हुए हैं। इनका गंध और स्पर्श अत्यन्त शुभ है। ... प्रश्न - हे भगवन्! सब इन्द्र कितने हैं?
उत्तर - हे गौतम! सब इन्द्र ६४ हैं। यथा - भवनपति देवों के २० (दक्षिण दिशा के 'असुरकुमारादि के दस और उत्तर दिशा के दस-२०) वाणव्यन्तर देवों के ३२ (दक्षिण दिशा के १६ और उत्तर दिशा के १६ = ३२) ज्योतिषी देवों के चन्द्र और सूर्य दो (जाति की अपेक्षा) वैमानिक देवों के दस (आठवें देवलोक तक ८, नववें-दसवें का एक प्राणतेन्द्र तथा ग्यारहवें बारहवें का एक अच्युतेन्द्र)।
नोट - ज्योतिषियों के दो भेद हैं - चर और अचर । अढाई द्वीप में चर हैं और बाहर अचर। अढाई द्वीप में १३२ चन्द्र और १३२ सूर्य चर हैं। अढाई द्वीप के. बाहर असंख्यात द्वीप
और समुद्रों में असंख्यात चन्द्र और असंख्यात सूर्य हैं ये सब अचर स्थिर हैं। वे सब इन्द्र हैं किन्तु यहाँ जाति की अपेक्षा एक चन्द्र एक सूर्य को इन्द्र रूप से लिया गया है। ___पूर्वाचार्यों की धारणा के अनुसार वर्तमान के ६४ इन्द्र सम्यग्दृष्टि, भवसिद्धिक एवं एक भवावतारी हैं। अगले भव में.महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष चले जायेंगे । कुछ इन्द्रों का तो खुलासा. आगम में आ गया है जैसे कि - जम्बूद्वीप के विंध्यगिरि की तलहटी में पूरण नामका तापस था। बाल तप के कारण वह मर कर चमरेन्द्र बना है। जम्बूद्वीप के पृथ्वीभूषण नगर में प्रजापाल नाम का राजा राज्य करता था। उस नगर में व्यापार करने वाले वणिकों की बहुत बड़ी बस्ती थी। एक हजार आठ दुकानें थी। उन सब का मुखिया कार्तिक सेठ था। वह
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