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- बारह अंग सूत्र
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Ka.. marwareneernment अटवी में परिभ्रमण करते हैं। इस द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक की आज्ञा की विराधना करके अनन्त जीव आगामी काल में चतुर्गति रूप संसार अटवी में परिभ्रमण करेंगे। . इस द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक की आज्ञा की आराधना करके अनन्त जीव चतुर्गति रूप संसार अटवी से पार हो गये हैं। इसी तरह वर्तमान काल में भी संख्याता जीव पार होते हैं और आगामी काल में भी अनन्ता जीव पार हो जायेंगे । . __यह द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक भूतकाल में नहीं था ऐसी बात नहीं, वर्तमान काल में नहीं है ऐसी बात नहीं, आगामी काल में नहीं रहेगा, ऐसी बात नहीं, किन्तु भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और आगामी काल में रहेगा। यह द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक ध्रुव है, नियत-निश्चित है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है, नित्य है। जैसे कि - पञ्चास्तिकाया भूतकाल में नहीं थी, ऐसी बात नहीं, वर्तमान काल में नहीं है, ऐसी बात नहीं, आगामी काल में नहीं रहेगी, ऐसी बात नहीं, किन्तु पञ्चास्तिकाया भूतकाल में थी, वर्तमान काल में है और आगामी काल में रहेगी। यह पञ्चास्तिकाया ध्रुव है, नियत-निश्चित है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है, नित्य है, इसी तरह यह द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक भूतकाल में नहीं था, ऐसी बात नहीं, वर्तमान काल में नहीं है, ऐसी बात नहीं, आगामी काल में नहीं रहेगा, ऐसी बात नहीं, किन्तु भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और आगामी काल में रहेगा। यह द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक ध्रुव है यावत् अवस्थित और नित्य है। इस द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक में अनन्त भाव, अनन्त अभाव, अनन्त हेतु, अनन्त अहेतु, अनन्त कारण, अनन्त अकारण, अनन्त जीव, अनन्त अजीव, अनन्त भवसिद्धिक, अनन्त अभवसिद्धिक, अनन्त सिद्ध, अनन्त असिद्ध, तीर्थङ्कर भगवान् द्वारा सामान्य और विशेष रूप से कहे जाते हैं, नामादि के द्वारा कथन किये जाते हैं, स्वरूप बतलाया जाता है, उपमा आदि के द्वारा दिखलाये जाते हैं, हेतु, दृष्टान्त आदि के द्वारा विशेष रूप से दिखलाये जाते हैं, उपनय, निगमन के द्वारा अथवा समस्त नयों के अभिप्राय से बतलाये जाते हैं। इस प्रकार द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक का संक्षिप्त विषय बतलाया गया है।। १२ ॥
विवेचन - जिस प्रकार धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय यह पांच अस्तिकाय रूप लोक है। यह पञ्चास्तिकाय भूतकाल में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी। इसी प्रकार यह द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगा। यह अचल है अर्थात् इसका अस्तित्व (सद्भाव) त्रिकालवर्ती है। इसलिये यह अचल है, यह मेरु पर्वत आदि की तरह स्थिर है इसलिये ध्रुव
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