Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 359
________________ ३४२ समवायांग सूत्र की सूत्र परिपाटी के अनुसार छिन्न छेद नय वाले हैं अर्थात् ये दूसरे पद की अपेक्षा नहीं रखते हैं। ये ही बाईस सूत्र आजीविक मत की सूत्र परिपाटी के अनुसार अछिन्न छेद नय वाले हैं। ये ही बाईस सूत्र त्रैराशिक मत की सूत्र परिपाटी के अनुसार नयत्रिक वाले हैं अर्थात् तीन नयों के अन्तर्गत होते हैं। ये ही बाईस सूत्र स्वसमय की सूत्र परिपाटी के अनुसार नयचतुष्क वाले हैं अर्थात् चार नयों के अन्तर्गत होते हैं। इस प्रकार पूर्वापर गिनने से ८८ सूत्र होते हैं ऐसा कहा गया है। यह सूत्र का कथन हुआ। विवेचन - जो नय प्रत्येक सूत्र को अन्य सूत्रों से भिन्न स्वीकार करे किन्तु सम्बन्धित स्वीकार नहीं करे, उसे छिन्न छेद नय कहते हैं। जैसे कि- "धम्मो मंगलमुक्किटुं" इत्यादि श्लोक सूत्र और अर्थ की अपेक्षा अपने अर्थ के प्रतिपादन करने में किसी दूसरे श्लोक की अपेक्षा नहीं रखता है। किन्तु जो श्लोक अपने अर्थ के प्रतिपादन में आगे या पीछे के श्लोक के सूत्र और अर्थ की अपेक्षा रखता है वह अच्छिन्नच्छेदनयिक कहलाता है। जो श्लोक दूसरे श्लोक की अपेक्षा रखता है और दूसरा श्लोक पहले श्लोक की अपेक्षा रखता है। इस प्रकार जो परस्पर सापेक्ष श्लोक हैं वे अच्छिन्नच्छेद नय वाले कहलाते हैं। गोशालक मत आदि द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक और उभयार्थिक इन तीन नयों को मानते हैं। अतः उन्हें त्रिनंयिक कहा गया है। किन्तु जो सिद्धान्त संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द नय इन चार नयों को मानते हैं। उन्हें चतुष्कनयिक कहते हैं। त्रिक नयिक वाले सभी पदार्थों का निरूपण-सत्, असत् और उभयात्मक रूप से करते हैं। किन्तु चतुष्कनयिक वाले उक्त चार नयों से सर्व पदार्थों का निरूपण करते हैं। से किं तं पुव्वगयं ? पुव्वगयं चउद्दसविहं पण्णत्तं, तंजहा - उप्पायपुव्वं, अग्गेणीयं, वीरियं, अत्थिणत्थिप्पवायं, णाणप्पवायं, सच्चप्पवायं, आयप्पवायं, कम्मप्पवायं पच्चक्खाणप्पवायं, विजाणुप्पवायं, अवज्झप्पवायं, पाणाउप्पवायं, किरियाविसालं, लोगबिंदुसारं। ___ भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन् ! पूर्वगत किसे कहते हैं ? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि तीर्थ का प्रवर्तन करते समय तीर्थंकर भगवान् गणधरों को जिस अर्थ का पहले पहल उपदेश देते हैं अथवा गणधर पहले पहल जिस अर्थ को सूत्र रूप में गूंथते हैं उसे पूर्व कहते हैं। इसके चौदह भेद हैं वे इस प्रकार हैं -१. उत्पाद पूर्व -' इसमें सभी द्रव्य और सभी पर्यायों के उत्पाद को लेकर प्ररूपणा की गई है। इसमें एक करोड़ पद हैं। २. अग्रायणीय - इसमें सब द्रव्य सब पर्याय और सब जीवों के परिमाण का वर्णन है। इसमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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