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मूल में उपलब्ध नहीं है तो भी वृद्ध परम्परा में यह प्रचलित है। इसलिये यहाँ लिख दी गयी हैं। इससे जिज्ञासुओं के ज्ञान में वृद्धि होने की संभावना है।
दूसरे श्रुतस्कन्ध में जो अहिंसादि रूप धर्म कथाओं के दस वर्ग (समूह) हैं। उनमें एक - एक धर्मकथा में ५००-५०० आख्याइकाएँ हैं। एक एक आख्याइका में ५००-५०० उपाख्याइकाएँ हैं। एक-एक उपाख्याइका में ५००-५०० आख्याइकाउपाख्याइकाएँ हैं। इस प्रकार पूर्वापर की संयोजना करने पर तीन करोड़ पचास लाख ( ३५००००००) आख्याइकाओं की संख्या हो जाती है।
शंका
धर्म कथाओं में इन आख्याइका, उपाख्याइका, आख्याइकाउपाख्याइका इन तीनों की संख्या एक अरब पच्चीस करोड़ पचास लाख (१२५५००००००) होती है तो फिर यहाँ सूत्रकार ने इनकी संख्या तीन करोड़ पचास लाख ही क्यों कही है . ?
समवायांग सूत्र
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समाधान- नौ ज्ञातों (उदाहरण) की जो आख्याइका आदि की संख्या बतलाई गयी है। ऐसी ही आख्याइकाएँ आदि दस धर्म कथाओं में भी हैं। इसलिये दस धर्म कथाओं में कही हुई आख्याइका आदि की संख्या में से नव ज्ञात में कही हुई आख्याइका आदिकों की संख्या को कम करके अपुनरुक्त आख्याइका आदि बचती हैं उनकी संख्या साढ़े तीन करोड़ (३५००००००) ही होती है। इस प्रकार पुनरुक्ति दोष से वर्जित आख्याइका आदि की संख्या का कथन मूल में - "एवमेव सपुव्वावरेणं अद्भुट्ठाओ अक्खाइयाकोडीओ भवतीति मक्खाओ" - साढ़े तीन करोड़ किया गया है।
वर्तमान में जो दूसरा श्रुतस्कन्ध उपलब्ध होता है उसमें धर्मकथाओं के द्वारा धर्म का स्वरूप बतलाया गया है। इसमें दस वर्ग हैं। तेईसवें तीर्थङ्कर पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ के पास दीक्षा ली हुई २०६ आर्यिकाओं (साध्वियों ) का वर्णन है । 'वे सब चारित्र की विराधक बन गयी थीं। अन्तिम समय में उसकी आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही काल धर्म प्राप्त हो गयी थी । भवनपतियों के उत्तर और दक्षिण के बीस इन्द्रों के तथा वाणव्यन्तर देवों के दक्षिण और उत्तर दिशा के बत्तीस इन्द्रों की एवं चन्द्र, सूर्य, प्रथम देवलोक के इन्द्र, सौधर्मेन्द्र ( शक्रेन्द्र ) तथा दूसरे देवलोक के इन्द्र ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हुई हैं। वहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जायेंगी ।
से किं तं उवासंगदसाओ ? उवासगदसासु णं उवासयाणं णयराई, उज्जाणाइं चेइयाई, वणखंडा, रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाइं, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइय इड्डविसेसा, उवासयाणं सीलव्वयवेरमणगुणपच्चक्खाण
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