Book Title: Samvayang Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 348
________________ बारह अंग सूत्र ३३१ विस्तार, महतिव्व कसाय इंदिय प्पमाय पावप्पओय असुहज्झवसाण संचियाणं - महातीव्र कषाय, इन्द्रिय प्रमाद, पापप्रयोग अशुभ अध्यवसाय यानी बुरे परिणामों से संचित किये हुए, णिरयगइतिरिक्खजोणि बहुविह वसण सयपरंपराबद्धाणं - नरक गति और तिर्यंच गति में अनेक प्रकार के कष्टों की परंपरा से बन्धे हुए जीवों के, णासा कण्णुटुंगुटु कर चरण णहच्छेयण जिब्भच्छेयण - नाक, कान, होठ, अंगुठा, हाथ पैर और नखों का तथा जिह्वा का छेदन करना, कडग्गिदाह - बांस की अग्नि में जलाना, गयचलणमलण - हाथी के पैरों नीचे रोंदना, उल्लंबण - वृक्ष की शाखा में उलटे मुंह लटका देना, सूल लया लउड लट्ठिभंजण - शूल से, लता से, डंडे से, लकड़ी से शरीर के अंगों को नष्ट करना, तउ सीसग तत्ततेल्ल कलकल अहिसिंचण - कलकल शब्द करता हुआ अत्यंत तपा हुआ रांगा, सीसा और तैल शरीर पर डालना, वज्झकत्तण - चमडी उधेड़ देना, काट देना, अणोवमाणि - अनुपमेय-उपमा रहित, धिइधणियबद्धकच्छेण - अत्यंत धैर्य और बल युक्त, णीसेस तिव्व परिणाम णिच्छियमई - हितकारी सुखकारी कल्याणकारी उत्कृष्ट परिणाम वाले दाता, अणुकंपा सयप्पओग तिकालमइ-विसुद्धभत्तपाणाइं पओगसुद्धाइं - अनुकम्पा के परिणाम से तथा त्रिकालिक बुद्धि की विशुद्धता से युक्त तथा उद्गम उत्पादना आदि दोषों से रहित शुद्ध आहार पानी, णर णरय तिरिय सुरगमण विपुल परियट्ट अरइ भय विसाय सोग-मिच्छत्त-सेलसंकडं - मनुष्यगति, नरकगति, तिर्यंच गति और देवगति इन चार गतियों में बारम्बार परिभ्रमण करने रूप महान् आवर्त वाले तथा अरति भय विषाद शोक और मिथ्यात्व रूपी पर्वतों से व्याप्त, अण्णाण तमंधयार चिनिखल्ल सुदुत्तारं - अज्ञानरूपी अन्धकार से युक्त और विषय वासना रूपी कीचड़ से परिपूर्ण होने से कठिनता से तैरने योग्य, जरा मरण जोणि संखुभियचक्कवालं - जरा और मरण से क्षुब्ध चक्रवाल युक्त, चुयाणं - चव कर आये हुए जीवों का। भावार्थ - शिष्य प्रश्न करता है कि हे भगवन्! विपाक सूत्र में क्या भाव फरमाये गये हैं ? गुरु महाराज उत्तर देते हैं कि हे शिष्य! विपाक सूत्र में सुकृत यानी शुभ और दुष्कृत यानी अशुभ कर्मों का फलविपाक कहा गया है। इस विपाक सूत्र के संक्षेप से दो भेद कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं - दुःखविपाक और सुखविपाक । उनमें से दुःखविपाक सूत्र के दस अध्ययन कहे गये हैं और सुखविपाक सूत्र के भी दस अध्ययन कहे गये हैं। शिष्य प्रश्न करता है कि अहो भगवन्! दुःखविपाक सूत्र में क्या भाव फरमाये हैं ? गुरु महाराज, उत्तर देते हैं कि दु:खविपाक सूत्र में अशुभ कर्मों के दु:ख रूप फल का भोग करने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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