________________
समवायांग सूत्र
रूप में लगा ऐसा अनुमान होता है क्योंकि यक्ष को वह धुन सवार हो गयी थी । उस आवेश में आकर वह मनुष्यों को मारता गया ।
३२२
प्रश्न क्या इसका पाप राजा और प्रजा को भी लगा ?
उत्तर - हाँ ! इसका पाप राजा और प्रजा दोनों ही को लगा क्योंकि राजा श्रेणिक ने उन छह गोट्ठीले (गोष्टिक) पुरुषों को किसी सुन्दर कार्य करने के उपलक्ष में वरदान दिया तो वह उनको किसी प्रकार की ताजिम या जागिरदारी या पारितोषिक दे सकता था किन्तु "तुम जो करो उसको राज्य की तरफ से अच्छा कहा जायेगा" ऐसा वरदान देना अनुचित था। इसी से उन पुरुषों को सात ही व्यसनों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा मिली, वे दुराचारी बन गये और स्वेच्छानुसार प्रवृत्ति करने लगे और इसीलिये यह सब अनर्थ हुआ। अतः अनुचित वरदान देने के कारण इस हत्या का पाप राजा को भी लगा ।
-
राजा ने तो यह अनुचित वरदान दे दिया किन्तु इस अनुचित और अन्याय युक्त वरदान को प्रजा ने सहन क्यों किया ? उसको (प्रजा को) उसका विरोध करना चाहिए था। क्योंकि प्रजा की रक्षा और सुव्यवस्था को राज्य कहते हैं । उस सुव्यवस्था से विपरीत राजा के आदेश को भी प्रजा को मान्य नहीं करना चाहिए। प्रजा ने इसका विरोध नहीं किया इसलिये इस हत्या के पाप का अंश रूप प्रजा को भी पाप लगा ।
७. तपश्चर्यात्मक तालिका अर्जुन अनगार ने बेले बेले की तपश्चर्या की, गजसुकुमाल मुनि ने भिक्षु की बारहवीं पड़िमा अंगीकार की, शेष ५५ पुरुष साधकों ने गुणरत्न संवत्सर तप किया था और बारह भिक्षु पडिमा अंगीकार की थी। राजा श्रेणिक की काली आदि १० महारानियों ने रत्नावली, कनकावली, आयम्बिल वर्धमान तप आदि अनेक प्रकार की दुष्करदुष्कर तपश्चर्याएं की।
Jain Education International
८. दीक्षात्मक तालिका गजसुकुमाल मुनि की दीक्षा पर्याय बहुत अल्प थी। (लगभग ७-८ घण्टे), अर्जुन अनगार की दीक्षा पर्याय ६ मास, शेष साधकों की ५, ७, १२, १६ यावत् २० वर्ष की और अतिमुक्तककुमार अनगार की बहुत वर्षों की दीक्षा पर्याय थी ।
९. मोक्षस्थान तालिका - गजसुकुमाल अनगार श्मशान भूमि में मोक्ष पधारे। शेष २२ वें तीर्थंकर के शासन के ४० पुरुष साधक शत्रुञ्जय पर्वत पर सिद्ध हुए । अर्जुन अनगार राजगृही मैं सिद्ध हुए । शेष भगवान् महावीर स्वामी के शासन के १५ पुरुष साधक विपुल गिरि पर सिद्ध हुए । भगवान् अरिष्टनेमि के शासन की १० स्त्री साधिका और भगवान्
-
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org